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Wednesday, 25 September 2019

September 25, 2019

संत श्री सुजारामजी महाराज

             संत श्री सुजारामजी

जिला जोधपुर, तहसील लूणी के गांव धुंधाड़ा में श्री शेरारामजी काग के सुपुत्र श्री लाबुरामजी एवं उनकी धर्म पत्नि श्रीमति मांगीदेवी के सुपुत्र सुजारामजी मात्र 10 वर्श की उम्र में ही श्री किशनारामजी के आदेश पर शिकारपुरा आ गए थे। श्री शेरारामजी काग गांव में प्रभावशाली व्यक्तित्व के धनी थे। जागीरदारी प्रथा की समाप्ति के बाद भूमि सेटलमेंट में उन्होने मुख्य भूमिका निबाही थी। उनके 4 पुत्रों में श्री लाबुरामजी तीसरे थे। एक सभा में श्री किशनारामजी महाराज ने श्री लाबूरामजी से पूछा कि आपके कितने पुत्र हैं तो उन्होने 3 पुत्र होने की बात कही। श्री किशनारामजी महाराज ने ग्राम सभा में कहा कि एक को मंदीर में सेवार्थ दे दो। श्री लाबूरामजी ने बात का मान रखते हुए अपने 3 वर्शीय पुत्र सुजाराम को मंदिर में भेंट करने का मानस बना लिया। फिर धुंधड़ा के ही श्री देवारामजी महाराज के भतीज श्री सांवलरामजी काग की श्रद्धांजली सभा में श्री सुजारामजी को देवारामजी को सुपुर्द कर दिया। उस वक्त श्री सुजारामजी महाराज की उम्र 10 वर्ष थी और वे शिकारपुरा आ गए जहां उन्होने शिक्षा-दिक्षा ग्रहण की। वे किशनारामजी महाराज के तीसरे शिष्य थे - प्रथम दयारामजी, दूसरे रघुनाथजी तथा तीसरे सुजारामजी। शिक्षा पूरी होते ही उन्होने समाज सेवा का कार्य हाथ में लिया लेकिन भगवान को उनकी लंबी उम्र मंजूर नहीं थी और 15 अक्टूबर, 2011 को मुम्बई में वे हमसे विदा हो गए किंतु एक प्रेरणा, एक सम्मान के रूप में वे सदा हमारे ह्रदय में रहेंगे।
September 25, 2019

श्री दयाराम जी महाराज का जीवन परिचय

          गादीपति श्री दयाराम जी

श्री दयाराम जी महाराज का जीवन परिचय
महंत श्री दयाराम जी महाराज के बचपन का नाम डायाराम था| पाली जिले की तहसील रोहट के गॉंव रेवडा खुर्द में पिता श्री अणदाराम जी भूरिया (सुपुत्र श्री रावताराम जी भूरिया) एवं माता श्रीमती हरकू देवी (सुपुत्री श्री हंसाराम जी काग रेवडा कला) के सुपुत्र श्री डायाराम का जन्म ज्येष्ठ शुल्का द्वितीय विक्रम संवत २०२५ को आपके ननिहाल रेवडा कला में हुआ| आपके दो भाई श्री मेहराराम एवं श्री मोटाराम एवं तीन बहिने गजरीदेवी, गवरीदेवी एवं पानीदेवी हैं |

शिकारपुरा आगमन एवं शिक्षा दीक्षा

श्री दयाराम जी महाराज दिनांक १ जुलाई १९७९ को आश्रम आ गए| उस समय महंत श्री देवाराम जी महाराज भक्ति में लीन थे एवं श्री किशनाराम जी महाराज समाज सेवा में व्यस्थ थे| श्री दयाराम जी के पिताजी श्री अणदाराम जी भूरिया द्वारा महंत श्री देवाराम को दिए गए वचन को पूरा करने के उद्धेस्य से ही श्री दयाराम जी को साधुत्व स्वीकार करना पड़ा| वर्तमान में आपको गुरुगादी कि चोथी पीढ़ी के रूप में श्री दयारामजी महाराज को महंत श्री की उपाधि से विभूषित किया गया |

नव गादीपति श्री १००८ श्री दयारामजी महाराज युवा महंत है , लग्नशील है अत: आपके सानिध्य में समाज चहुमुखी विकास के पथ पर आगे बढेगा एवं गुरूजी के दिए उपदेशो का प्रचार - प्रचार होगा |
September 25, 2019

» श्री १००८ श्री किशनारामजी महाराज

 श्री १००८ श्री किशनारामजी महाराज

महंत श्री श्री १००८ संत शिरोमणि श्री किशनाराम जी महाराज शिकारपुरा (लूनी) पीठाधीश महंत श्री किशनाराम जी महाराज का ननिहाल रोहिचा (कल्ला) में भाखररामजी कुरड के यंहा माता श्रीमती चुन्नीबाई की कोख से दिनांक २० अक्टूम्बर, १९३० को जन्म हुआ |

किशनारामजी के पिताजी का नाम वजारामजी ओड सुपुत्र श्री विरमारामजी हैं जो (लूनी) के रहने वाले हैं |

सात वर्ष की अवस्था में किशानारामजी के स्वास्थ्य में दिनोदिन गिरावट आती गयी, इस कारण वजारामजी किशनारामजी को शिकारपुरा आश्रम लेकर जाते और समाधी की परिक्रमा देकर वापस घर लोट आते, इसी बिच वजारामजी की भेंट महंत श्री देवारामजी महाराज के साथ हुयी, जिन्होंने किशनारामजी को अपने सानिध्य में रखने की इच्छा जाहिर की, तब वजारामजी ने अपने परिवार वालो से सलाह-मशविरा करके देवारामजी महाराज के सानिध्य में शिकारपुरा आश्रम को सुदुर्प कर दिया|

फिर देवारामजी महाराज के सानिध्य में किशनारामजी की प्राथमिक शिक्षा आरम्भ हुयी तथा साथ ही धर्म और समाज सम्बन्धी जानकारिया भी देते रहे| प्राथमिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद जोधपुर से स्नातर की शिक्षा प्राप्त की तथा साथ ही आयुर्वेद शिक्षा (रजि. संख्या ६४६४ ए) का भी ज्ञान प्राप्त किया | शिक्षा ग्रहण करने के बाद महंत श्री देवारामजी ने शिकारपुरा आश्रम की जिम्मेदारी श्री किशनाराम जी को सॉप दी |

तत्पक्षात अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करते हुए महंत श्री देवारामजी के देवलोक गमन के बाद आषाढ़ वद ४ बुधवार विक्रम संवत २०५३ को शिकारपुरा आश्रम के गादीपति बने | पीठाधीश बनने के बाद महंत श्री किशनाराम जी महाराज ने अपने गुरु के बतलाये हुए रास्ते पर चलते हुए समाज के चहुमुखी विकास के लिए दिन-रात एक कर दिया| किशनारामजी हँसमुख एवं मिलनसार व्यक्तित्व के धनि थे | वे गरीब जनता की निशुल्क तथा सेवा भाव करतेसे उपचार करते थे | किशनारामजी ने अपना पूरा जीवन जन सेवा और गौ सेवा में समर्पित कर दिया |

आश्रम में आने वाले दर्शनार्थियों में छोटे से बड़े तक के लिए भोजन की निशुल्क वयवस्था वर्षो से चल रही हैं, महंत श्री का कहना था की मंदिर में बनाने वाली प्रसाद आने वाले हर श्रदालुओ को मिलनी चाहिए | इसलिए आश्रम का भोजनालय २४ घंटे खुला रहता हैं | यह व्यवस्था बिना किसी भेदभाव अनवरत चल रही हैं, इसलिए हर जाती धर्म के हजारो भक्त आपके अनुयायी हैं |

किशनारामजी महाराज ने समाज के चहुमुखी विकास के लिए सर्वप्रथम बालिका शिक्षा एवं मृत्युभोज पर ज्यादा जोर दिया, शिक्षण संस्थानों एवं छात्रावासों का निर्माण करवाया | किशनारामजी के प्रयास से राजारामजी आश्रम, शिकारपुरा में श्री राधेकृष्ण मंदिर का निर्माण, जोधपुर के पाल रोड में संत श्री देवारामजी छात्रावास एवं कॉलेज का निर्माण, आहोर में श्री राजारामजी आंजना पटेल छात्रावास का निर्माण, जालोर में श्री राजारामजी आँजना पटेल छात्रावास का निर्माण, दिल्ली में शिक्षण संस्थान के लिए भूमि की खरीद, हरिद्वार एवं रामदेवरा में धर्मशाला का निर्माण, माउंट आबू में श्री राजारामजी छात्रावास एवं शिक्षण संस्थान का निर्माण इत्यादि अनेक कार्य संपन किये | तथा कल्याणपुर में श्री राजारामजी चिकित्सालय का शिलान्यास भी किशानारामजी के कर कमलो द्वारा हुआ | वर्तमान में राजस्थान में ६०, गुजरात में ४८, मद्यप्रदेश में ३५, कर्नाटका में १०, महारास्त्र में ६, तमिलनाडु में ४ छात्रावास का निर्माण हुआ जो एक रिकॉर्ड हैं |

इसी दरमियान किशनारामजी ने कलबी आँजना समाज को एक सूत्र में पिरोने के लिए अखिल भारतीय आँजना (पटेल) समाज महासभा का गठन किया | जिसके जरिये महंत जी ने समूचे भारत में फैले हुए आँजना समाज को एक नयी दिशा प्रदान की, जिसके फलस्वरूप आज समाज की छवि रास्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना चुकी हैं | महंत श्री किशनारामजी ने हमेशा समाज के लोगो को सावित्व एवं संस्कारपूर्ण जीवन जीने की प्रेरणा दी तथा बाल-विवाह पर रोक एवं बालिका शिक्षा पर ज्यादा जोर दिया | किशनारामजी समाज में समाज सुधारक के नाम से भी जाने जाते हैं |

आँजना समाज के लिए किशनारामजी ने तन-मन-धन से प्रयास करके समाज को एक उन्नतिशील समाज की दौड़ में शामिल करके ७७ वर्ष की अवस्था में दिनांक ६.१.२००७ को परमात्मा में लीन हो गए |
September 25, 2019

» श्री १००८ श्री देवारामजी महाराज


        श्री १००८ श्री देवारामजी महाराज

श्री 1008 देवारामजी महाराज का जीवन परिचय
श्री राजारामजी महाराज के समाधि के बाद आपके प्रधान शिष्य श्री देवारामजी महाराज को आपके उपदेशो का प्रचार व प्रसार करने के उद्देश्य से आपकी गद्दी पर बिठाया और महंत श्री की उपाधि से विभूषित किया गया ! महंत श्री देवारामजी ने अपने गुरुभाई श्री लच्छीरामजी ,श्री गणेशरामजी और श्री शंभुरामजी के साथ भ्रमण करते हुए श्री राजारामजी महाराज के उपदेशो को संसारियों तक पहुँचाने का प्रयत्न करने में अपना जीवन लगा दिया ! श्री गुरुदेव राजारामजी के शुरू किये हुए काम को पूरा करने में अपना जीवन लगाकर अथक प्रयत्न करते रहे ! जिसके लिए आंजना पटेल समाज सदा आपका ऋणी रहेगा !



 देवारामजी की स्तुति
आनंद मंगल कंरु आरती,
हरि गुरु सन्तन सेवा।
सकल तीर्थ सन्तों के दर्शन,
संतन संग है मेवा।।
देव रुप है देवारामजी
गंगा जमना सम खेवा।
आप तरे कुल तारण वाले,
गुरुवर मेरे देवा।।
श्वेत वस्त्र में शुद्ध भावना,
दीन हीन की सेवा।
अन्न दान उत्तम अतिमानों,
दे शिक्षा सुसंस्कार गुरु देवा।।

सकल मनोरथ पूर्ण होवे,
संत्सग आपकी श्री देवा।
कष्ट मिटे तरें भवसागर,
हरि गुरु सिर चरणों लेवा।।
श्री गुरुवर की मंगल आरती,
कर कर पावे मेवा।
हाथ जोड़ मोहन सिर चरणों,
हाथ जोड़ भक्तन सिर चरणों।।

Tuesday, 2 July 2019

July 02, 2019

 चमत्कारी संत श्री राजेश्वर भगवान

                                      श्री राजेश्वर भगवान

श्री राजऋषि योगीराज ब्रह्राचारी ब्रह्रालीन चमत्कारी संत अवतारी पुरुष पुजनीय संत श्री श्री 1008 श्री राजारामजी महाराज का जन्म विक्रम संवत चैत्र सुदी नवमी  1939  (चैत्र शुल्क ९ संवत १९३९) को, जोधपुर तहसील के गाँव शिकारपुरा में, आंजना कलबी वंश की सिह खांप में पिता श्री हरिरामजी व  माता श्रीमती  मोतीबाई के घर में हुआ था|
 जिस शिशु ने मोतीबार्इ की कोख से जन्म लिया है वह कोर्इ साधारण शिशु नही है- वह असाधारण बालक साक्षात परमात्मा का अंश है ।
 इस अलौकिक पुत्र को पाकर हरिंग जी और मोतीबार्इ के मन में अपार तृपित का भाव जागृत हुआ था जैसे उन्हे सब कुछ मिल गया हो । जैसे परमात्मा ने  उनकी हर इच्छा पूरी कर दी हो ।
  जिस समय राजारामजी की आयु लगभग 10 वर्ष थी तब राजारामजी के पिता श्री हरिरामजी का  परलोक वास हो गया और कुछ समय बाद माता श्रीमती  मोतीबाई का  स्वर्गवास हो गया |
 अल्पायु मे माता-पिता के परलोक गमन को वे सहज ही स्वीकार कर नही पाये ।
माता-पिता के देहांत के बाद राजारामजी के  बड़े भाई श्री रगुनाथ रामजी नंगे सन्यासियों की जमात में चले गए और कुछ समय तक राजारामजी अपने चाचा श्री थानारामजी व कुछ समय तक अपने मामा श्री मादारामजी भूरिया, गाँव धान्धिया के पास रहने लगे | बाद में शिकारपुरा के रबारियो की सांडिया, रोटी कपडे के बदले एक साल तक चराई और गाँव की गांये भी बिना हाथ में लाठी लिए नंगे पाँव 2 साल तक राम रटते चराई |
चमत्कारी लीला:-
गाँव की गवाली छोड़ने के बाद राजारामजी ने गाँव के ठाकुर के घर 12 रोटियां प्रतिदिन व कपड़ो के बदले हाली का काम संभाल लिया| इस समय राजारामजी के होंठ केवल ईश्वर के नाम रटने में ही हिला करते थे | श्री राजारामजी अपने भोजन का आधा भाग नियमित रूप से कुत्तों को डालते थे | यह संसार का नियम है कि दुसरे का सुख किसी को अच्छा नही लगता है । राजाराम के भोजन के सुख से नार्इ सुखी नही रहता था । एक दिन नार्इ ने शिकायत कर ठाकुर को कह डला कि वह हाली अन्न का नुकशान करता है । इसकी शिकायत ठाकुर से होने पर 12 रोटियों के स्थान पर 6 रोटिया ही देने लगे, फिर 6 मे से 3 रोटिया महाराज, कुत्तों को डालने लगे, तो 3 में से 1 रोटी ही प्रतिदिन भेजना शुरू कर दिया, लेकिन फिर भी भगवन अपने खाने का आधा हिस्सा कुत्तों को डालते थे |
इस पर ठाकुर ने विचार किया की राजारामजी को वास्तव में एक रोटी प्रतिदिन के लिये कम ही हैं और किसी भी व्यक्ति को जीवित रहने के लिए ये काफी नहीं हैं अतः ठाकुर ने भोजन की मात्रा फिर से निश्चित करने के उद्धेश्य से राजाराम जी को भोजन के लिए घर पर आकर खाने का हुकुम दिया 
शाम के समय श्री राजाराम जी ईश्वर का नाम लेकर ठाकुर के यहाँ भोजन करने गए | श्री राजारामजी ने बातों ही बातों में 15 किलो आटे की रोटिया आरोग ली पर आपको भूख मिटने का आभास ही नहीं हुआ | ठाकुर और उनकी की पत्नी यह देख अचरज करने लगे | फिर आखिर में ठाकुर साहब ने राजारामजी को एक तुलसी के पते का पान कराया तभी उनकी भूख शांत हो गयी तभी ठाकुर को ज्ञान हो गया की ये कोई साधारण इंसान नहीं है बल्कि कोई दिव्य अवतारी पुरुष है |
 उसी दिन शाम से राजारामजी हाली का काम छोड़कर तालाब पर जोगमाया के मंदिर में आकर राम नाम रटने लगे | उधर गाँव के लोगो को चमत्कार का समाचार मिलने पर उनके दर्शनों के लिए ताँता बंध गया |
दुसरे दिन राजारामजी ने द्वारिका का तीर्थ करने का विचार किया और दंडवत करते हुए द्वारिका रवाना हो गए | 5 दिनों में शिकारपुरा से पारलू पहुंचे और एक पीपल के पेड़ के नीचे हजारो नर-नारियो के बिच अपना आसन जमाया और उनके बिच से एकाएक इस प्रकार से गायब हुए की किसी को पता ही नहीं लगा | श्री राजारामजी 10 माह की द्वारिका तीर्थ यात्रा करके शिकारपुरा में जोगमाया के मंदिर में प्रकट हुए और अद्भुत चमत्कारी बाते करने लगे, जिन पर विश्वास कर लोग उनकी पूजा करने लग गए | राजारामजी को लोग जब अधिक परेशान करने लग गये तो 6  मास का मोन रख लिया | जब राजारामजी ने शिवरात्री के दिन मोन खोला तब लगभग 80 हजार वहां उपस्थित लोगो को उपदेश दिया और अनेक चमत्कार बताये जिनका वर्णन जीवन चरित्र नामक पुस्तक में विस्तार से किया गया हैं |
महादेवजी के उपासक होने के कारण राजारामजी ने शिकारपुरा में तालाब पर एक महादेवजी का मंदिर बनवाया, जिसकी प्रतिष्ठा करते समय अनेक भाविको व साधुओ का सत्कार करने के लिए प्रसाद के स्वरूप नाना प्रकार के पकवान बनाये जिसमे 250 क्विंटल घी खर्च किया गया | उस मंदिर के बन जाने के बाद श्री राजारामजी के बड़े भाई श्री रगुनाथारामजी जमात से पधार गये और 2 साल साथ तपस्या करने के बाद श्री रगुनाथारामजी ने समाधी ले ली | बड़े भाई की समाधी के बाद राजारामजी ने अपने स्वयं के रहने के लिए एक बगेची बनाई, जिसको आजकल श्री राजारामजी आश्रम के नाम से पुकारा जाता हैं|

  चमत्कारी संत अवतारी पुरुष श्री राजाराम जी महाराज त्रिकालदर्षी संत थे । भविष्य में झांक लेने की उनमे अदभुत क्षमता थी । एक घटना इस सत्य को प्रमाणित करने के लिए काफी है । सांमतशाही का दौर था । देशी शासक मौज कर रहे थे , उन्हे अपनी रियासते सुरक्षित प्रतित होती थी लेकिन राजाराम जी को कही कुछ खटक रहा था । उन्हे देशी रियासतो का भविष्य अच्छा नही दिखर्इ पड़ रहा था ।
राजाराम जी ने कहा था- जागीरी जाएगी , जरूर जाएगी । राजाराम जी की यह भविश्यवाणी अक्षरष: सत्य सिध्द हुर्इ । सभी राजे - रजवाड़ो को भारत के  गृहमंत्री सरदार वल्लभार्इ पटेल के समक्ष समर्पण करना पड़ा ।

श्री राजारामजी महाराज ने संसारियों को अज्ञानता से ज्ञानता की ओर लाने के उद्धेश्य से बच्चों को पढाने-लिखाने पर जोर दिया | जाती, धर्म, रंग आदि भेदों को दूर करने के लिए समय-समय पर अपने व्याखान दिये | बाल विवाह, कन्या विक्रय, मृत्युभोज जैसी बुराईयों का अंत करने का अथक प्रयत्न किया | राजारामजी ने लोगो को नशीली वस्तुओ के सेवन से दूर रहने, शोषण विहीन होकर धर्मात्न्माओ की तरह समाज में रहने का उपदेश दिया |राजारामजी एक अवतारी महापुरुष थे, इस संसार में आये और समाज के कमजोर वर्ग की सेवा करते हुए, श्रावण वद १४(14) संवत २००० को इस संसार को त्याग करने के उद्धेश्य से जीवित समाधि ले ली |
 आज श्री राजारामजी महाराज को श्री राजेश्वर भगवान के नाम से भी जाना जाता है और गुरूजी का शिकारपुरा में भव्य मंदिर भी है जहा हजारो की संख्या में श्रदालु दर्शन हेतु आते है |

     जय राजेश्वर भगवान की ..

July 02, 2019

आंजना समाज के सामाजिक संस्थान

आंजना समाज के सामाजिक संस्थान









राजस्थान
जिला- जोधपुर

1. श्री राजाराम आंजना आश्रम ट्रस्ट, शिकारपुरा  जोधपुर (राजस्थान) 
   नोट- ये आश्रम रेलवे स्टेशन लूनी जंक्शन से पॉँच किलोमीटर और जोधपुर     
   पाली रोड मार्ग पर कांकाणी से चार किलोमीटर दूर हैं |

2. श्री राजाराम सेवा संस्थान
    114, सेंट पेट्रिक्स स्कूल रोड, जोधपुर-342003
    नोट- इस संस्था में आधुनिक सुविधा वाला छात्रालय हैं और रहने की सुविधा तथा पुस्तकालय भी हैं |

3. पटेल ग्राम सेवा संस्थान पटेल न्याती भवन,
    पांचवी रोड, जोधपुर-342003
    नोट- इस संस्था में समाज के लोगो के रहने के लिए उत्तम व्यवस्था हैं |

4. देवाराम शिक्षण संस्थान एवं छात्रावास
   पाल रोड, जोधपुर
   नोट- 1 से 12 तक विद्यालय व् छात्रावास की उत्तम व्यवस्था हैं |

5. श्री राजेश्वेर विकास समिति.
     खेमे का कुँआ, जोधपुर |

6. संत श्री देवारामजी सेवा संसथान,
     शिकारपुरा रोड सालावास.

7. श्री अंजाना पटेल समाज विकास समिति, सिणली, जोधपुर.

8. श्री राजारामजी सेवा संसथान
    चितला, धवा.

9. श्री राजारामजी महाराज बगेची
    झंवर, तहसील- लूनी, जोधपुर.

10. श्री पटेल समाज विकास समिति,
      रोहिचा खुर्द, तहसील- लूनी.

11. श्री देवाराम सेवा संसथान,
      मोगरा पाली रोड, जोधपुर.

12. श्री पटेल नवयुवक मंडल,
      चर, तहसील- लूनी

जिला- पाली

1. पटेल छात्रावास केरिया दरवाजा, मंडिया रोड पाली (राजस्थान) |

2. श्री अंजनी माता मंदिर
   चेंडा, तह- रोहट, पाली

3. संत श्री मालारामजी महाराज मंदिर,
     बिन्जा, तह- रोहट, पाली.

4. श्री राजारामजी शिक्षण संस्थान,
     रोहट, पाली.

जिला- जालोर

1. श्री राजारामजी छात्रावास,
     आहोर रोड जालोर.

2. श्री राजारामजी छात्रावास,
      भीनमाल .

3. श्री राजारामजी छात्रावास,
      रानीवाडा.

4. श्री राजारामजी छात्रावास,
      सांचौर.

5. श्री राजारामजी छात्रावास,
      आहोर.

जिला- बाड़मेर

1. संत श्री राजारामजी मानव सेवा अस्पताल,
     कल्यानपुर मैन रोड, बाड़मेर .

2. श्री राजारामजी छात्रावास,
     समदडी रोड, बालोतरा.

3. श्री पटेल नयति भवन,
     समदडी

4. श्री राजारामजी छात्रावास,
     सिवाना

5. श्री राजारामजी छात्रावास,
     गुडामालानी.

6. श्री राजाराम द्वारिका गमन विश्राम स्थल,
     तहसील- पचपदरा.

7. श्री राजारामजी व् हरिरामजी महाराज बगेची,
     ढीढच, तहसील- सिवाना.

जिला- सिरोही

1. श्री सिरोही जिला कलबी आंजना समाज संस्थान, 
     सिरोही.

2. श्री आंजना माता सेवा समिति,
     गुलाबगंज.

3. श्री कलबी आंजना सेवा सदन,
     रेवदार.

भीनमाल क्षेत्र

1. श्री राजाराम महाराज सेवा समिति,
    भीलवाडा.

2. श्री आंजना नवयुवक मंडल,
     छोटी सादड़ी, चितौड़.

3. श्री आंजना नवयुवक मंडल सेवा,
      प्रतापगड.

माउंट आबू

1. श्री अखिल आंजना महासभा
   कुम्भारिया डेरा के सामने, माउन्टाबू
   (यहाँ छात्रालय की व्यवस्था हैं)

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गुजरात

अहमदाबाद-गांधीनगर

1. श्री अखिल आंजणा केलवनी मंडल
   संचालित श्री रामजीभाई मोतीभाई देसाई छात्रावास, 10 बी कल्याण
   सोसाइटी, मिठारव्की, अहमदाबाद

2. श्री अखिल आंजना समाज सेवा मंडल, अहमदाबाद
   संचालित- श्री वकता भाई केशर भाई पटेल अतिथिगृह,
   लालभाईनी चोक, मांडवीनी चोक, माणक चोक, अहमदाबाद
   फ़ोन न. -2149928

3. श्री अखिल आंजना समाज सेवा मंडल,
   संचालित- श्री नाथू भाई, महादेव भाई चौधरी अतिथिगृह,
   जीवराम मास्टर की चाव (chowl) के पास बालभवन के सामने,
   असारवा, अहमदाबाद, फ़ोन न. - 375172

4. श्री अखिल आंजना समाज सेवा मंडल, अहमदाबाद
   संचालित- श्री नाथू भाई, महादेव भाई चौधरी अतिथिगृह,
   पटेल बास चरबदी का खांचा, वि एस हॉस्पिटल के सामने, भाद्लपुर,
   अहमदाबाद

5. श्री अखिल आंजना युवा मंडल,
   ११ चोथी मंजिल, विनोद चेम्बर, हरियापुर
   तरवाजा के बाहर, अहमदाबाद-४
   फ़ोन न. - 338686, 339211

6. श्री अखिल आंजणा केलवनी मंडल, गांधीनगर
     संचालित- श्री जे एम चौधरी कन्या विद्यालय और रतन बेन चौधरी छात्रालय तथा महिला आर्ट्स
     कॉलेज
    सेक्टर-7. गांधीनगर
    फ़ोन न.-21306, 21307

बनास कांठा

1. श्री बनासकांठा आंजणा पटेल केलवनी मंडल
   संचालित- कक्षा १ से १२ तक स्कूल, कुमार और कन्या छात्रावास, b.c.a कॉलेज.
   सोनारिया बंगला के पास, देरी रोड, पालनपुर, जिला- बनासकांठा
   फ़ोन न.- 54241, 60847, 60846.

2. श्री अखिल आंजना चौधरी युवा परिवार,
   c/o - पटेल बोर्डिंग, सोनारिया बंगला के पास, देरी रोड, पालनपुर, जिला- बनासकांठा

3. श्री चौधरी छात्रावास
   पेट्रोल पम्प के पीछे, मु. ता.- धानेरा, जिला- बनासकांठा

4. स्वामी विवेकानंद हाई स्कूल
   पेट्रोल पम्प के पीछे, मु. तह.- धानेरा, जिला- बनासकांठा

5. आंजणा पटेल छात्रावास
   मु.-शिरोही , तह.- कांकरेज जिला- बनासकांठा

6. आंजणा पटेल छात्रावास
   मु.- देवदर, जिला- बनासकांठा

7. आंजणा पटेल छात्रावास
   मु.- भाबर, तह.-देवदर, जिला- बनासकांठा

8. श्री अखिल आंजना समाज सेवा मंडल,
   संचालित- चौधरी विश्रांति गृह कान्त्तेश्वेर रोड
   मु. पो.- अम्बाजी, जिला- बनासकांठा

9. श्री चौधरी पटेल छात्रावास
     डायमंड सोसायटी हाईवे, दिसा

मेहसाना

1. श्री आंजना युवक मंडल
   c/o ;- आदर्श विद्यालय विसनगर

2. श्री सत्ताविश आंजना युवक मंडल
   c/o - मु . पो.- मनसा, तह.-विजापुर, जिला- महेसाणा

3. श्री चौधरी सेवा समाज
   c/o - आदर्श विद्यालय, चाटन, जिला- महेसाणा,

4. श्री अखिल आंजणा केलवनी मंडल, चाटन
   संचालित- आदर्श विद्यालय, कुमार और कन्या  छात्रावास, चाटन
   फ़ोन न- 20433

 5. श्री अखिल आंजणा केलवनी मंडल, विसनगर
   संचालित- आदर्श विद्यालय, विसनगर,     जिला-  महेसाणा
   फ़ोन न- 20163

 6. श्री दान्तोर युवक मंडल
   मु . पो.- रीरवाणी , तह.-खेशलू , जिला-महेसाणा

7. श्री अखिल आंजना युवक समाज मंडल,
    c/o - आदर्श विद्यालय, विसनगर

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मध्यप्रदेश

1. आंजना समाज महासभा
   किर्तिचोक, उज्जैन (मध्यप्रदेश)

2. आंजना धर्मशाला,
    कार्तिक चौक, उज्जैन

3. आंजना धर्मशाला,
    ओमकारेश्वर, खंडवा

4. श्री आंजना सेवा संस्थान
    झाबुआ

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महाराष्ट्र

1. श्री बनासकांठा चौधरी प्रगति मंडल ट्रस्ट
   संचालक - श्री हरी भाई, कानजी भाई अतिथिगृह ,
   2/3 जयेश अपार्टमेन्ट, चंदावरकर रोड, बोरीवली  (वेस्ट) मुंबई-92

2. श्री राजाराम पटेल (आंजना) सेवासंघ,
     धारावी, मुंबई.

3. श्री राजाराम पटेल (आंजना) सेवासंघ,
     वसई, मुंबई.

4. श्री राजाराम पटेल (आंजना) सेवासंघ,
      कालेवादी, पूना.

5. श्री राजाराम आंजना समाज विकास मंडल,
      नवी मुंबई.

6. श्री राजाराम पटेल (आंजना) सेवासंघ,
     भिवंडी.

7. श्री राजाराम पटेल (आंजना) सेवासंघ,
      नासिक.

8. श्री राजाराम पटेल (आंजना) सेवासंघ,
     लातूर.

9. श्री राजाराम पटेल (आंजना) सेवासंघ,
     कोल्हापुर

10. श्री राजाराम पटेल (आंजना) सेवासंघ, इचलकरंजी

11. श्री राजाराम पटेल (आंजना) सेवासंघ  रत्नागिरी.

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गोवा
1. श्री राजाराम पटेल (आंजना) सेवासंघ,
     पणजी गोवा .

2. श्री राजाराम पटेल (आंजना) संस्थान,
     पाडा 

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आँध्रप्रदेश

1. श्री राजाराम पटेल (आंजना) सेवासंघ,
    हैदराबाद.

2. श्री राजाराम पटेल (आंजना) सेवासंघ,
     पूर्वी गोदावरी जिला

3. श्री राजाराम पटेल (आंजना) सेवासंघ,
     कप्पडा

4. श्री राजाराम पटेल (आंजना) सेवासंघ,
     अनंतपुर.

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तमिलनाडु

 1. श्री राजाराम पटेल (आंजना) सेवासंघ,
     चेन्नई.

2. श्री राजाराम पटेल (आंजना) सेवासंघ,
    झारोड़

3. श्री राजाराम पटेल (आंजना) सेवासंघ,
     सेलम.

4. श्री राजाराम पटेल (आंजना) सेवासंघ,
     कोयम्बटूर

5. श्री राजाराम पटेल (आंजना) सेवासंघ,
     त्रिपुर.

6. श्री राजाराम पटेल (आंजना) सेवासंघ,
     नागरकोयल

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कर्नाटक

1. श्री राजाराम पटेल (आंजना) सेवासंघ,
    बेंगलोर.

2. श्री राजाराम पटेल (आंजना) सेवासंघ,
    तम्कुर.

3. श्री राजाराम पटेल (आंजना) सेवासंघ,
    हसन.

4. श्री राजाराम पटेल (आंजना) सेवासंघ,
    बलारी.

5. श्री राजाराम पटेल (आंजना) सेवासंघ,
    चिकमगलूर.

6. श्री राजाराम पटेल (आंजना) सेवासंघ,
    मेंगलोर.

7. श्री राजाराम पटेल (आंजना) सेवासंघ,
     कारवार.

8. श्री राजाराम पटेल (आंजना) सेवासंघ,
    शिमोगा.

9. श्री राजाराम पटेल (आंजना) सेवासंघ,
    हुबली.

10. श्री राजाराम पटेल (आंजना) सेवासंघ,
     चित्रदुर्गा, दावंगिरी

11. श्री राजाराम पटेल (आंजना) सेवासंघ ,
     बेलगाँव

12. श्री राजाराम पटेल (आंजना) सेवासंघ,
      मैसूर.

13. श्री राजाराम पटेल (आंजना) सेवासंघ,
      कोपल.

14. श्री राजाराम पटेल (आंजना) सेवासंघ,
      गंगावती.

15. श्री राजाराम पटेल (आंजना) सेवासंघ,
      रायचूर.

16. श्री राजाराम पटेल (आंजना) सेवासंघ,
      गदग.

July 02, 2019

पटेल समाज के धार्मिक स्थल

     पटेल समाज के धार्मिक स्थल :-














 1. आस्था का केंद्र श्री राजेश्वर धाम :-












 संत श्री राजारामजी महाराज आश्रम, शिकारपुरा, जोधपुर यह आश्रम राजस्थान के जोधपुर जिले के गाँव शिकारपुरा में स्थित है। इस आश्रम की स्थापना उन्नीसवीं शताब्दी में संत राजारामजी महाराज द्वारा की गयी
श्री राजाराम जी महाराज का आश्रम लूनी से 6 किमी दूर शिकारपुरा गॉव में प्रवेश करते ही आँजणा समाज की गौरव महिमा का परिचय उसके भव्य स्वरूप से हो जाता है । सर्वप्रथम शिकारपूरा तालाब पर ही राजारामजी द्वारा महादेवजी का मंदिर बनवाया गया था जिससे वर्तमान में राजारामजी का पुराना मंदिर कहा जाता है । तत्पश्चात एक बगीची का निर्माण करवाया गया था । जो आज एक भव्य एवं विस्तृत धाम का रूप ले चूका है और यह अब राजारामजी आश्रम के नाम से प्रसिद है । आज यह धाम आँजणा समाज का प्रतीक बन कर पुरे समाज को दिशा देने का रथ है । शिकारपुरा का जो वर्तमान स्वरूप है उसके पीछे समाज बन्धुओ का तो योगदान है ही किन्तु पूजनीय किशनारामजी की प्रेरणा और उनके परिश्रम को कम करके नहीं आका जा सकता ।
राजारामजी का आश्रम शिकारपुरा में एक बहुत बड़े भू-भाग पर फेला हुआ है । इस आश्रम में दो प्रवेश द्वार है एक प्रवेश द्वार लूणी शिकारपुरा मार्ग पर स्थित है जो सीधा मुख्य मंदिर तक ले जाता है और दूसरा प्रवेश सालावास शिकारपुरा मार्ग पर स्थित है मुख्य चोराहे से डेड किमी अन्दर जाने पर अभी हाल ही में निर्मित भव्य सत्संग भवन तक पहुचते है ।
राजारामजी आश्रम में मुख्य मंदिर राजारामजी का जीवित समाधी स्थल है जिसके साथ ही श्री राधा कृष्णा का मंदिर भी है। शिकारपुरा मंदिर अत्यंत ही भव्य तथा शांतिप्रदायक है , चारो और राजारामजी की जीवनी हस्त कला - कृतियो के माध्यम से दर्शाया गया है । इस मंदिर से ऊपर की और जाते ही श्री राधा कृष्णा का नवनिर्मित मंदिर है जिसकी छटा देखते ही बनती है ।
मंदिर के बायीं और बहुत बड़े भू- भाग में धर्मशाला का निर्माण कार्य लगभग पूरा हो चूका है ।यह धर्मशाला भविष्य में आश्रम में विश्राम स्थल के लिए बहुत लाभदायक सिद्ध होगी । इसी के साथ - साथ एक विशाल रसोई भवन भी निर्मित किया गया है । जो मेले के दौरान तथा अन्य दिवसों में आये हुए अतिथियों की सेवा में मुख्य भूमिका निभा रही है ।रसोई भवन के पास में ही बहुत बड़ी यज्ञशाला है जिसमे बड़ी मात्रा में यज्ञ - वेदिया बनाई गयी जो बहुत मनोरम आभा बिखेरती है यज्ञशाला के समीप एक मंदिर तथा एक पानी की टंकी भी है ।
इस मंदिर के दायी और एक बहुत बड़ी गौशाला है जिसमे काफी संख्या में गौमाताये है जिनकी अच्छे प्रकार से सेवा सुश्रषा की जाती है दिन के समय में गायो को चराने के लिए खेतो में ले जाया जाता है , गौशाला के समीप ही पक्षियों के लिए चबूतरे का निर्माण कराया गया है जहा पर अनेको अन्न आदि दिया जाता है आश्रम में वर्तमान में विशाल सत्संग [ सभा ] भवन का निर्माण करवाया गया है ,जहा श्री किशनारामजी महाराज के सानिध्य में सत्संग होते थे और अब वर्तमान गादिपति श्री दयारामजी महाराज की निश्रा में सारे कार्यकर्म संपन होते है।इस भवन की शिल्प-कला अत्यंत मनोरम है इस पुरे आश्रम में फेली हुई हरियाली बहुत सुखद अनुभव देती है ।
इस आश्रम की सबसे बड़ी विशेषता यह है की यहाँ पर आनेवाले श्रदालुओ की .. की जाने वाली सेवा तथा अतिथि सत्कार बहुत सहारनीय है। श्रदालु वर्तमान गादीपति श्री दयारामजी महाराज का सामीप्य पाकर अपने आप में धन्य मानते है यहाँ पर श्रदालुओ के ठहरने के लिए विश्राम घर भी है, यहाँ आने वाले हर श्रदालु को चाय, गाय का दूध, दही,भोजन,अल्पाहार आदि की व्यवस्था से अतिथि सत्कार किया जाता है सभी सेवा करने वाले भी भक्तगण ही है। आश्रम में विशाल अन्न भंडार है जिसका उपयोग श्रदालुओ के लिए किया जाता है।पुरे आश्रम की व्यवस्था यहाँ पर बनी हुई प्रन्यास सिमिति देखती है जिसका कार्यालय भी आश्रम में ही स्थित है।
जून 2011 में समाधी मंदिरों का प्रतिष्ठा महोत्सव धूमधाम से संपन हुआ । इस प्रतिष्ठा महोत्सव में लगभग 12 लाख श्रदालु उपस्थित थे ब्रह्मलीन देवारामजी महाराज एवम किशनारामजी महाराज की समाधी पर नवनिर्मित मंदिर की मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा के ऐतिहासिक समारोह ने प्रदेश ही नहीं बल्कि पुरे देश के मानचित्र पर शिकारपुरा आश्रम की गूंज फ़ेला दी । प्रतिष्ठा महोत्सव को देखते हुए हाल ही में कई नये निर्माण भी करवाए है ।




  2.आस्था का केंद्र श्री चेंडा मंदिर








 संत श्री राजारामजी महाराज आश्रम, चेंडा, पाली
यह आश्रम राजस्थान के पाली जिले के गाँव चेंडा में स्थित है | चेंडा गाँव पाली शहर से करीब 49 किलोमीटर की दुरी पर स्थित हैं |
भाव आस्था से महापुरुषों की यादगिरी में पवित्र स्थानों का निर्माण होता हैं । इसी सन्दर्भ में संवत २००० श्रावण वद १४ को भगवान श्री 1008 राजारामजी के समाधी ग्रहण करने के बाद उनकी पाटवी शिष्या श्री हंजा बाई जी ने अपने गुरु की सेवा साधना हेतु चेंडा गांव में आसन ग्रहण किया । चेंडा गांव के भगवत प्रेमियों के योगदान से उक्त गांव के तालाब के किनारे भव्य मंदिर का निर्माण करवाया गया जो श्री राजारामजी महाराज की बगेची के नाम से प्रख्यात है । उक्त पवित्र स्थान की प्रतिष्ठा संवत 2015  वैशाख सुद्र 13 के 24 गांवो के संत महंत खोड़ जितडा को रसोई देकर की गई । उक्त स्थान का कार गुजार भाव भक्ति से आकाश व्रती पर चल रहा हैं । हंजाबाई ने भगवान श्री राजारामजी का जन्म दिन प्रकट करने के लिये उक्त स्थान पर रामनवंमी को मेला लगाने की संपूर्ण व्यवस्था की जाती है। यह मेला प्रतिष्ठा समय से लगातार लग रहा हैं । जिसमें चैत्र शुक्ल अष्टमी की रात्री को विशाल संत सांगत का आयोजन प्रति वर्ष किया जाता हैं । उक्त मंदिर के प्रति गांव वासियों की हार्दिक आस्था हैं । एवं उनका योगदान सराहनीय हैं । यह स्थान हंजाबाई संरक्षण के प्रगति का प्रतिक हैं । और वर्तमान में गादिपति श्री भगवती बाई जी के सानिध्य में यहाँ पर आने वाले श्रदालुओ के लिए चाय-पानी , दुध और उचित भोजन की उत्तम व्यवस्था की जाती है ।



3. अंजनी माता मंदिर, चेंडा, पाली

 यह आश्रम राजस्थान के पाली जिले के गाँव चेंडा(नया) में स्थित है | चेंडा गाँव पाली शहर से करीब 52 किलोमीटर की दुरी पर स्थित हैं |

4. संत श्री माला राम जी महाराज आश्रम, बिन्जा, पाली
 यह आश्रम राजस्थान के पाली जिले के गाँव बिन्जा में स्थित है | बिन्जा गाँव पाली शहर से करीब 35 किलोमीटर की दुरी पर स्थित हैं |


 5 . संत राजा राम मंदिर, लुम्बा की ढाणी, जालौर

 यह मंदिर लुम्बा की ढाणी के लोगों द्वारा बनाया गया है | यहाँ हर साल रामनवमी को मेले का आयोजन होता है.

  6. संत राजारामजी मंदिर, तालियाना, जालौर

 यह मंदिर संत ओखा राम जी के द्वारा बनाया गया हैं | जो भगवान कृष्ण की उपासना और संत राजा राम जी महाराज के शिष्य थे |

  7 .माता अर्बुदा देवी मंदिर, माउंटआबू

 यह मंदिर माउंट (राजस्थान) में स्थित है |

  8.संत राजारामजी मंदिर ,पारलू (बाड़मेर)

 यह मंदिर बाड़मेर के पारलू गाव में स्थिति है।













July 02, 2019

आंजणा समाज की गौत्रें

                  

                  आंजणा समाज की गौत्रें


              


1. अजगल
2. अटार
3. अलवोणा
4. अगीयोरी
5. अंट
6. अनाड़ी
7. अपलोण
8. अभग
9. अटोस
10. आईडी
11. आवड़ा
12. आकोदिया
13. आमट
14. आंटिया
15. सोसीतिया
16. ओहरा
17. ओड़
18. ओठवाणा
19. उदरा
20. उजल
21. उवड़ा
22. ऊबड़ा
23. करवट
24. करड़
25. करण
26. कडुआ
27. कणोर
28. कमालिया
29. कहावा
30. काल
31. कच्छवाह
32. काला
33. काग
34. काटाकतरिया
35. किशोर
36. कुरंद
37. कुणिया
38. कुकान
39. कुंकल
40. कुवा
41. कुहांत
42. कुओल
43. कुपंलिया
44. कुंकणा
45. कैड
46. कोया
47. कोयला
48. कोंदला
49. कोंदली
50. कोरोट
51. कोहरा
52. खरसोण
53. खागड़ा
54. खांट
55. खींची
56. खुरसोद
57. गया
58. गारिया
59. गालिया
60. गघाऊ
61. गागोड़ा
62. गामी
63. गुडल
64. गुर्जर
65. गोगडू
66. गोली
67. गोया
68. गौर
69. गोहित
70. गोटी
71. गोदा
72. गोयल
73. घेंसिया
74. चावड़ा
75. चोल
76. चौथ्या
77. जड़मल
78. जड़मत
79. जगपाल
80. जाट
81. जागी
82. जींबला
83. जुवा
84. जूना
85. जुकोल
86. जुडाल
87. जेगोड़ा
88. जोपलिया
89. गड़
90. टोंटिया
91. ढढार
92. डाबर
93. डेल
94. डकोतिया
95. डांगी
96. डोडिया
97. डोजी
98. ठांह
99. गेवलिया
100. तरक
101. तवाडिया
102. तितरिया
103. वुगड़ा
104. तुरंग
105. तेजुर्वा
106. दीपा
107. घंघात
108. घुणिया
109. घुड़िया
110. घोलिया
111. घोबर
112. गण
113. नावी
114. नायी
115. नाड़ीकाल
116. नूगोल
117. नावर
118. परमार
119. परिहार
120. पवया
121. पानचातारोड़   
122. पाविया
123. पावा
124. पाकरिया
125. पिलातर
126. पिलासा
127. पुलिया
128. पौण
129. कहावा
130. फक
131. फुकावट
132. फुंदारा
133. फोकरिया
134. बुग
135. बग
136. बड़वाल
137. बला
138. बरगडया
139. बुगला
140. बुबकिया
141. बूबी
142. बेरा
143. बोका
144. बोया
145. भुजवाड़
146. भगत
147. भेतरेट
148. भदरूप
149. भटार
150. भतोल
151. भाटिया
152. भार्गव
153. भीत
154. भूंसिया
155. भूतड़ा
156. भुदरा
157. भूरिया
158. भूचेर
159. भूंगर
160. भोमिया
161. भैंसा
162. भोड़
163. भोंग
164. मरूवालय
165. मसकरा
166. महीआ
167. मईवाड़ा
168. मनर
169. मालवी
170. मावल
171. मुजल
172. मुड़क
173. मुजी
174. मेहर
175. मोर
176. यादव
177. राठौड़
178. रातड़ा
179. रावण
180. रावता
181. रावक
182. रावाडिया
183. राकवा
184. रामातर
185. रूपावट
186. रोंटिया
187. लखात
188. लाफा
189. लाखड़या
190. लाड़्वर
191. लूदरा
192. लोया
193. लोल
194. लोगरोड़
195. वक
196. वला
197. बहिया
198. वणसोला
199. वलगाड़ा
200. बागमार
201. वीसी
202. वेलाकट
203. शिहोरी
204. सरावग
205. समोवाज्या
206. सासिया
207. साकरिया
208. सांडिया
209. सायर
210. सांसावर
211. सेघल
212. सिलोणा
213. सीह
214. सीतपुरिया
215. सुरात
216. सुशला
217. सुंडल
218. सुजाल
219. सेड़ा
220. सोपीवल
221. सोलंकी
222. सौमानीया
223. संकट
224. हरणी
225. हड़ुआ
226. हडमंता
227. हाडिया
228. हिरोणी
229. हुण
230. होवट
231. होला
232. गाडरिया


233. सुराला 
July 02, 2019

आँजणा समाज का इतिहास

      आँजणा समाज का इतिहास :--




  आँजणा समाज, चौधरी, पटेल, कलबी या पाटीदार समाज के नाम से भी जाना जाता है। आँजणा समाज की कुल २३२ गोत्रे हैं। भारत में राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश में निवास करने वाली एक हिंदू जाति है। इसमें भी विशेष रूप से गुजरात और राजस्थान, और राजस्थान में जागीरदार, जमींदार या Chudhary ओर पटेल के रूप में जाना जाता है। अंजना चौधरी की जाति के गुरु संत श्री राजाराम जी महाराज (विष्णु के अवतार) है। जिनका भव्य मंदिर और आश्रम जोधपुर के पास, शिकारपुरा राजस्थान (लूनी) में हैं। भव्य बादशाही भूतकाल धरानी आँजणा जाति का इतिहास गौरान्वित हैं ।

  आँजणा कि उत्पति :--
 आँजणा कि उत्पति के बारे में विविध मंतव्य/दंत्तकथाये प्रचलित हैं। जैसे भाट चारण के चोपडे में आँजणा समाज के उत्पति के साथ सह्स्त्राजुन के आठ पुत्रो कि बात जोड़ ली है । जब परशुराम शत्रुओं का संहार करने निकले तब सहस्त्रार्जुन के पास गए । युद्घ में सहस्त्रार्जुन और उनके 92 पुत्रो की मृत्यु हो गयी ।आठ पुत्र युध्भूमि छोड के आबू पर माँ अर्बुदा की शरण में आये।अर्बुदा देवी ने उनको रक्षण दिया । भविष्य मैं वो कभी सशत्र (हथियार) धारण न करे उस शर्त पर परशुराम ने उनको जीवनदान दिया ।उन आठ पुत्रो मैं से दो राजस्थान गए ।उन्होंने भरतपुर मैं राज्य की स्थापना की उनके वंसज जाट से पहचाने गए । बाकि के छह पुत्र आबू मैं ही रह गए वो पाहता अंजन के जैसे और उसके बाद मैं उस शब्द का अप्ब्रंश होते आँजणा नाम से पहचाने गए ।
वे देवी के अनुयायी थे, क्योंकि यह जाति के नाम की उत्पत्ति देवी अंजनी माता, भगवान हनुमान की माता से आता है कि माना जाता है। माउंट आबू में देवी Arbuda अंजना चौधरी की kuldevi है।
सोलंकी राजा भीमदेव पहले की पुत्री अंजनाबाई ने आबू पर्वत पर अन्जनगढ़ बसाया और वहां रहनेवाले आँजणा कहलाये ।मुंबई मैं गेझेट के भाग १२ मैं बताये मुजब इ. स. ९५३ में भीनमाल मैं परदेशियों का आक्रमण हुआ, तब कितने ही गुजर भीनमाल छोड़कर अन्यत्र गए । उस वक्त आँजणा पटिदारो के लगभग २००० परिवार गाडे में भीनमाल का निकल के आबू पर्वत की तलेटी मैं आये हुए चम्पावती नगरी मैं आकर रहने लगे । वहां से धाधार मे आकर स्थापित हुए, अंत मे बनासकांठा ,साबरकांठा ,मेहसाना और गांधीनगर जिले मे विस्तृत हुए ।
सिद्धराज जयसिंह इए .स . 1335-36 मैं मालवा के राजा यशोवर्मा को हराकर कैद करके पटना में लकडी के पिंजरे मे बंद करके घुमाया था।मालवा के दंडनायक तरीके दाहक के पुत्र महादेव को वहिवाट सोंप दिया ।तब उत्तर गुजरात मे से बहुत से आँजणा परिवार मालवा के उज्जैन प्रदेश के आस -पास स्थाई हुए है ।वो पाटन आस पास की मोर, आकोलिया , वगदा ,वजगंथ,जैसी इज्जत से जाने जाते हैं ।आँजणा समाज का इतिहास राजा महाराजो की जैसे लिखित नहीं हैं ।धरती और माटी के साथ जुडी हुई इस जाती के बारे मैं कोई सिलालेखो मे बोध नहीं है।खुद के उज्जवल भविष्य के लिए श्रेष्ठ मार्गद है।
इस समाज के लोग मुख्य रूप से राजस्थान , गुजरात,मध्य प्रदेश ( मेवाड़ एवं मारवाङ क्षेत्र ) में रहते हैं ।आँजणा समाज का मुख्य व्यवसाय कृषि और पशुपालन है। आँजणा समाज बहुत तेजी से प्रगति कर रहा है एवं आजादी के बाद यह परिपाटी बदल रही है। समाज के लोग सेवा क्षेत्र और व्यापार की ओर बढ रहे हैं।इस समय समाज के बहुत से लोग,महानगरों और अन्य छोटे - बड़े शहरों मे कारखानें और दुकानें चला रहे है।आँजणा समाज के बहुत से लोग सरकारी एवं निजी सेवा क्षेत्र में विभिन्न पदों पर जैसे इंजीनियर, डॉक्टर, वकील, अध्यापक, प्रोफेसर और प्रशासनिक सेवाओं जैसे आईएएस, आईएफएस आदि में हैं।
आँजणा समाज में कई सामाजिक,धार्मिक और राजनीतिक नेताओं ने जन्म लिया

 जाति गुरू-संत श्री राजाराम जी महाराज:-


 अठारहवीं सदी में महान संत श्री राजाराम जी महाराज ने आँजणा समाज में जन्म लिया ।उन्होंने समाज में अन्याय ( ठाकुरों और राजाओं द्वारा ) और सामाजिक कुरितियों के खिलाफ जागरूकता पैदा की।उन्होंने समाज में शिक्षा के महत्व पर भी जोर दिया। आँजणा समाज की सनातन( हिन्दू ) धर्म में मान्यता है।आँजणा समाज में अलग अलग समय पर महान संतों एवं विचारकों ने जन्म लिया हैं।इन संतो एवं विचारकों ने देश के विभिन्न हिस्सों में कई मंदिरों एवं मठों का निर्माण भी करवाया

  श्री शिकारपुरा आश्रम:--



  शिकारपुरा आश्रम लूनी से लगभग 6 किमी की दूरी पर स्थित है। लूनी राजस्थान के जोधपुर जिले में एक तहसील है। इस आश्रम उन्नीसवीं सदी में संत राजा राम जी महाराज द्वारा स्थापित किया गया था।
शिकारपुरा आश्रम के महंतों हैं: संत देवा राम जी महाराज, संत Kishna राम जी महाराज व गुरू Sujaramji महाराज, संत दयाराम। आश्रम अपनी स्थापना से समाज की सेवा करने के लिए जारी है।
                             
     आँजणा कलबी समाज का वर्ण :--




 आज से करीब करीब  ढाई तीन हजार वर्ष पूर्व की बात हैं हमारे देश में आर्यो का युग था । उस समय के वैदिक आर्यो के समाज के अपने वर्ण थे और वैदिक आर्यो के चार वर्णो में एक वर्ण था क्षत्रिय वर्ण, उनके क्षत्रिय वर्ण में हमारे पुरखो की गणना की जाती थी। उनके काल में जब युद्ध होते थे आपसी लड़ाईयाँ होती थी तब क्षत्रिय कहलाने वाले हमारे पूर्वज योद्धा बनकर अपनी सेवा देते थे । लेकिन जब शांति का समय होता था ,तब वो लोग अपना पेट पालने के लिए , अपनी रोजी रोटी कमाने के लिए और सभी की सेवा के लिए अन्न उत्त्पन्न करने का कार्य करते थे ,और अन्न उत्तपन्न करना ,हल चलाना ,खेती करने के लिए उनका मुख्य औजार हल था  तो उन्हें हली क्षत्रिय के नाम से पुकारा जाने लगा।  और वो एक ऐसा वक्त था जब भारत का ईरानी लोगो के साथ संपर्क होना शुरु हो गया था , उनके आपसी संपर्क और भाषा का तालमेल था , ईरानी लोग खेती के औजार हल को कुलबा बोलते थे .और उन्होंने हमारे पुरखो को हली क्षत्रिय की जगह कुलबी क्षत्रिय कहना शुरु कर दिया ! उस समय जैसे जैसे उनकी जनसंख्या बढ़ती गई तो अपनी रोजमर्रा की जिंदगी को जारी रखते हुए अपना पेट पालने के लिए घूमते फिरते गुजरात की और रुख किया और गुजरात की किसी आजन्यु यानी की अजान भूमि पर पहुंच गए और वहा रहकर अपनी आजीविका शुरु की! धीरे धीरे उस अजान  भूमि पर उन्होंने अपना सामज्य स्थापित किया और ब्रजपाल को अपना राजा बनाया ! मध्य काल की शुरुआत हो चुकी थी ! जनसंख्या बढ़ने लगी तो वहां से उठ कर कुछ पुरखो ने अजान प्रदेश के उत्तर यानि की राजस्थान की तरफ रुख किया और मारवाड़ क्षेत्र के श्रीमाल भाग पर जो की राजस्थान के जालोर जिला के भीनमाल के आसपास का क्षेत्र माना जाता हे ! वहां पहूँचकर अपना बसेरा डाला और अपनी आजीविका प्रारम्भ की  इधर के लोगो ने इन्हे अजान भू भाग से आने के कारण उन्हें अजान कहा !
ऐसा होना भी स्वाभाविक था क्यों की आज भी हम जो गुजरात से आता हे उसे गुजराती और पंजाब से आता हे वो पंजाबी आदि कहते हैं !  तो इस तरह हमारे पूर्वजो के यहाँ तक पहुँचते पहुँचते "अजान  कुलबी क्षत्रिय" कहा जाने लगा था, और इसके बजाय की उन्होंने क्षत्रिय कर्मो को पूर्ण रूप से त्याग दिया और हल चलना ही अपना मुख्य कर्म बना लिया उसे ही अपनी आजीविका का साधन बना लिया  , धीरे धीरे पुरे राजस्थान ,मध्य प्रदेश और गुजरात तीन राज्यों में  फेल गए और बदलती परिस्थितियों के साथ साथ समाज के काम काज में भी कुछ बदलाव आया और इन्होने व्यापार की तरफ भी रुख किया और इस क्षेत्र में भी अपनी अच्छी पहचान बना चुके हैं आज खेती , व्यापार , सरकारी नौकरी , सेवा ,  हर जगह कलबी पटेल समाज की अच्छी पकड़ हैं आज लगभग पुरे भारत के हर कोने में अपना व्यापार फैलाए हुए हैं, और समय बदलने के साथ साथ कुलबी क्षत्रिय की जगह "आँजणा कुलबी" को ही अपना नाम परिचय रखा कर अपनी पहचान आँजणा कुलबी से ही देने लगे .अतः कुलबी शब्द एक अपभ्रंश शब्द हे तो कुलबी को सिर्फ कलबी ही बोला जाने लगा और "आँजणा कुलबी" की जगह "आँजणा कलबी" ही रह गया .! इस तरह  ग्रंथो में लिखित उलेख बताता हे की आज से लगभग ढाई तीन हजार साल पहले हमारे पूर्वजो को "कलबी क्षत्रिय" के नाम से जाना जाने लगा था और करीब करीब १४०० वर्ष पूर्व वो  आंजना कुलबी के नाम से अपनी पहचान बना चुके थे ! कही कही कुर्मी और कुलबी शब्द का भी काफी जोड़ तोड़कर उल्लेख हे पर वैसे देखा जाये तो दोनों ही शब्द एक हे और इनका काम और मकसद भी एक ही था और हे , खेती करने वाले ! भारत में लगभग 1488  तरह के कुलबियो के होने का उल्लेख हे  जो को हमारी आँजणा कलबी समाज की ही तरह कई तरह की शाखाओ  में विभक्त हे उनका भी उल्लेख हे की उनकी भी उत्पत्ति क्षत्रिय वर्ण से हुई मानी जाती हे पर उनकी वर्ण ,,गोत्र ,,नख हमसे और हमारी समाज से काफी भिन्नता रखते हे ! लेकिन हमारी हमारे क्षत्रिय वर्ग को कुल चौदह शाखाओ में यानि की वर्णो में विभाजित किया गया हे  जो हे ..१. चौहान २.तंवर ,३.चौड़ा ४. झाला ५. सोलंकी ६.सिसोदिया ७ यादव ८.परिहार ९. कच्छवाह १०.राठौर ११. गोयल १२. जेठवा १३. परमार और १४. मकवाना !और चौदह वर्णो को २५० गोत्र के रूप में विभाजित किया गया हे .जैसे ,, काग , कुकल ,कर्ड, कोदली ,बोका ,तरक,भोड़,धूलिया,दुनिया,मोर,मुजी,रातडा,ओड, वागडा,भूरिया, जुडाल,काला,कोदली,फक बूबी,,,केउरी ,,,,,,, ?
इस तरह हमारे समाज के सम्पूर्ण इतिहास के तोर पर हमारी नार्वो के तोर पर और हमारी गोत्रो के तोर पर ,,,सब को मध्येनजर रखते  हुए यह कहा जाना उचित ही होगा की हमारी उत्त्पत्ति वैदिक आर्यो के क्षत्रिय वर्ण से हुई हे !अतः हमें अपना  परिचय आँजणा कलबी नाम से देने में कोई अतिश्योक्ती नहीं होनी चाहिए !
                         !THANK YOU!

              Jai Shree Rajeshvar.Bhagavan
                  Jai Aanjana Maa




                   Prakash Choudhary 











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