श्री राजऋषि योगीराज ब्रह्राचारी ब्रह्रालीन चमत्कारी संत अवतारी पुरुष पुजनीय संत श्री श्री 1008 श्री राजारामजी महाराज का जन्म विक्रम संवत चैत्र सुदी नवमी 1939 (चैत्र शुल्क ९ संवत १९३९) को, जोधपुर तहसील के गाँव शिकारपुरा में, आंजना कलबी वंश की सिह खांप में पिता श्री हरिरामजी व माता श्रीमती मोतीबाई के घर में हुआ था|
जिस शिशु ने मोतीबार्इ की कोख से जन्म लिया है वह कोर्इ साधारण शिशु नही है- वह असाधारण बालक साक्षात परमात्मा का अंश है ।
इस अलौकिक पुत्र को पाकर हरिंग जी और मोतीबार्इ के मन में अपार तृपित का भाव जागृत हुआ था जैसे उन्हे सब कुछ मिल गया हो । जैसे परमात्मा ने उनकी हर इच्छा पूरी कर दी हो ।
जिस समय राजारामजी की आयु लगभग 10 वर्ष थी तब राजारामजी के पिता श्री हरिरामजी का परलोक वास हो गया और कुछ समय बाद माता श्रीमती मोतीबाई का स्वर्गवास हो गया |
अल्पायु मे माता-पिता के परलोक गमन को वे सहज ही स्वीकार कर नही पाये ।
माता-पिता के देहांत के बाद राजारामजी के बड़े भाई श्री रगुनाथ रामजी नंगे सन्यासियों की जमात में चले गए और कुछ समय तक राजारामजी अपने चाचा श्री थानारामजी व कुछ समय तक अपने मामा श्री मादारामजी भूरिया, गाँव धान्धिया के पास रहने लगे | बाद में शिकारपुरा के रबारियो की सांडिया, रोटी कपडे के बदले एक साल तक चराई और गाँव की गांये भी बिना हाथ में लाठी लिए नंगे पाँव 2 साल तक राम रटते चराई |
चमत्कारी लीला:-
गाँव की गवाली छोड़ने के बाद राजारामजी ने गाँव के ठाकुर के घर 12 रोटियां प्रतिदिन व कपड़ो के बदले हाली का काम संभाल लिया| इस समय राजारामजी के होंठ केवल ईश्वर के नाम रटने में ही हिला करते थे | श्री राजारामजी अपने भोजन का आधा भाग नियमित रूप से कुत्तों को डालते थे | यह संसार का नियम है कि दुसरे का सुख किसी को अच्छा नही लगता है । राजाराम के भोजन के सुख से नार्इ सुखी नही रहता था । एक दिन नार्इ ने शिकायत कर ठाकुर को कह डला कि वह हाली अन्न का नुकशान करता है । इसकी शिकायत ठाकुर से होने पर 12 रोटियों के स्थान पर 6 रोटिया ही देने लगे, फिर 6 मे से 3 रोटिया महाराज, कुत्तों को डालने लगे, तो 3 में से 1 रोटी ही प्रतिदिन भेजना शुरू कर दिया, लेकिन फिर भी भगवन अपने खाने का आधा हिस्सा कुत्तों को डालते थे |
इस पर ठाकुर ने विचार किया की राजारामजी को वास्तव में एक रोटी प्रतिदिन के लिये कम ही हैं और किसी भी व्यक्ति को जीवित रहने के लिए ये काफी नहीं हैं अतः ठाकुर ने भोजन की मात्रा फिर से निश्चित करने के उद्धेश्य से राजाराम जी को भोजन के लिए घर पर आकर खाने का हुकुम दिया ।
शाम के समय श्री राजाराम जी ईश्वर का नाम लेकर ठाकुर के यहाँ भोजन करने गए | श्री राजारामजी ने बातों ही बातों में 15 किलो आटे की रोटिया आरोग ली पर आपको भूख मिटने का आभास ही नहीं हुआ | ठाकुर और उनकी की पत्नी यह देख अचरज करने लगे | फिर आखिर में ठाकुर साहब ने राजारामजी को एक तुलसी के पते का पान कराया तभी उनकी भूख शांत हो गयी तभी ठाकुर को ज्ञान हो गया की ये कोई साधारण इंसान नहीं है बल्कि कोई दिव्य अवतारी पुरुष है |
उसी दिन शाम से राजारामजी हाली का काम छोड़कर तालाब पर जोगमाया के मंदिर में आकर राम नाम रटने लगे | उधर गाँव के लोगो को चमत्कार का समाचार मिलने पर उनके दर्शनों के लिए ताँता बंध गया |
दुसरे दिन राजारामजी ने द्वारिका का तीर्थ करने का विचार किया और दंडवत करते हुए द्वारिका रवाना हो गए | 5 दिनों में शिकारपुरा से पारलू पहुंचे और एक पीपल के पेड़ के नीचे हजारो नर-नारियो के बिच अपना आसन जमाया और उनके बिच से एकाएक इस प्रकार से गायब हुए की किसी को पता ही नहीं लगा | श्री राजारामजी 10 माह की द्वारिका तीर्थ यात्रा करके शिकारपुरा में जोगमाया के मंदिर में प्रकट हुए और अद्भुत चमत्कारी बाते करने लगे, जिन पर विश्वास कर लोग उनकी पूजा करने लग गए | राजारामजी को लोग जब अधिक परेशान करने लग गये तो 6 मास का मोन रख लिया | जब राजारामजी ने शिवरात्री के दिन मोन खोला तब लगभग 80 हजार वहां उपस्थित लोगो को उपदेश दिया और अनेक चमत्कार बताये जिनका वर्णन जीवन चरित्र नामक पुस्तक में विस्तार से किया गया हैं |
महादेवजी के उपासक होने के कारण राजारामजी ने शिकारपुरा में तालाब पर एक महादेवजी का मंदिर बनवाया, जिसकी प्रतिष्ठा करते समय अनेक भाविको व साधुओ का सत्कार करने के लिए प्रसाद के स्वरूप नाना प्रकार के पकवान बनाये जिसमे 250 क्विंटल घी खर्च किया गया | उस मंदिर के बन जाने के बाद श्री राजारामजी के बड़े भाई श्री रगुनाथारामजी जमात से पधार गये और 2 साल साथ तपस्या करने के बाद श्री रगुनाथारामजी ने समाधी ले ली | बड़े भाई की समाधी के बाद राजारामजी ने अपने स्वयं के रहने के लिए एक बगेची बनाई, जिसको आजकल श्री राजारामजी आश्रम के नाम से पुकारा जाता हैं|
चमत्कारी संत अवतारी पुरुष श्री राजाराम जी महाराज त्रिकालदर्षी संत थे । भविष्य में झांक लेने की उनमे अदभुत क्षमता थी । एक घटना इस सत्य को प्रमाणित करने के लिए काफी है । सांमतशाही का दौर था । देशी शासक मौज कर रहे थे , उन्हे अपनी रियासते सुरक्षित प्रतित होती थी लेकिन राजाराम जी को कही कुछ खटक रहा था । उन्हे देशी रियासतो का भविष्य अच्छा नही दिखर्इ पड़ रहा था ।
राजाराम जी ने कहा था- जागीरी जाएगी , जरूर जाएगी । राजाराम जी की यह भविश्यवाणी अक्षरष: सत्य सिध्द हुर्इ । सभी राजे - रजवाड़ो को भारत के गृहमंत्री सरदार वल्लभार्इ पटेल के समक्ष समर्पण करना पड़ा ।
श्री राजारामजी महाराज ने संसारियों को अज्ञानता से ज्ञानता की ओर लाने के उद्धेश्य से बच्चों को पढाने-लिखाने पर जोर दिया | जाती, धर्म, रंग आदि भेदों को दूर करने के लिए समय-समय पर अपने व्याखान दिये | बाल विवाह, कन्या विक्रय, मृत्युभोज जैसी बुराईयों का अंत करने का अथक प्रयत्न किया | राजारामजी ने लोगो को नशीली वस्तुओ के सेवन से दूर रहने, शोषण विहीन होकर धर्मात्न्माओ की तरह समाज में रहने का उपदेश दिया |राजारामजी एक अवतारी महापुरुष थे, इस संसार में आये और समाज के कमजोर वर्ग की सेवा करते हुए, श्रावण वद १४(14) संवत २००० को इस संसार को त्याग करने के उद्धेश्य से जीवित समाधि ले ली |
आज श्री राजारामजी महाराज को श्री राजेश्वर भगवान के नाम से भी जाना जाता है और गुरूजी का शिकारपुरा में भव्य मंदिर भी है जहा हजारो की संख्या में श्रदालु दर्शन हेतु आते है |
जय राजेश्वर भगवान की ..
No comments:
Post a Comment