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Tuesday, 2 July 2019

July 02, 2019

 चमत्कारी संत श्री राजेश्वर भगवान

                                      श्री राजेश्वर भगवान

श्री राजऋषि योगीराज ब्रह्राचारी ब्रह्रालीन चमत्कारी संत अवतारी पुरुष पुजनीय संत श्री श्री 1008 श्री राजारामजी महाराज का जन्म विक्रम संवत चैत्र सुदी नवमी  1939  (चैत्र शुल्क ९ संवत १९३९) को, जोधपुर तहसील के गाँव शिकारपुरा में, आंजना कलबी वंश की सिह खांप में पिता श्री हरिरामजी व  माता श्रीमती  मोतीबाई के घर में हुआ था|
 जिस शिशु ने मोतीबार्इ की कोख से जन्म लिया है वह कोर्इ साधारण शिशु नही है- वह असाधारण बालक साक्षात परमात्मा का अंश है ।
 इस अलौकिक पुत्र को पाकर हरिंग जी और मोतीबार्इ के मन में अपार तृपित का भाव जागृत हुआ था जैसे उन्हे सब कुछ मिल गया हो । जैसे परमात्मा ने  उनकी हर इच्छा पूरी कर दी हो ।
  जिस समय राजारामजी की आयु लगभग 10 वर्ष थी तब राजारामजी के पिता श्री हरिरामजी का  परलोक वास हो गया और कुछ समय बाद माता श्रीमती  मोतीबाई का  स्वर्गवास हो गया |
 अल्पायु मे माता-पिता के परलोक गमन को वे सहज ही स्वीकार कर नही पाये ।
माता-पिता के देहांत के बाद राजारामजी के  बड़े भाई श्री रगुनाथ रामजी नंगे सन्यासियों की जमात में चले गए और कुछ समय तक राजारामजी अपने चाचा श्री थानारामजी व कुछ समय तक अपने मामा श्री मादारामजी भूरिया, गाँव धान्धिया के पास रहने लगे | बाद में शिकारपुरा के रबारियो की सांडिया, रोटी कपडे के बदले एक साल तक चराई और गाँव की गांये भी बिना हाथ में लाठी लिए नंगे पाँव 2 साल तक राम रटते चराई |
चमत्कारी लीला:-
गाँव की गवाली छोड़ने के बाद राजारामजी ने गाँव के ठाकुर के घर 12 रोटियां प्रतिदिन व कपड़ो के बदले हाली का काम संभाल लिया| इस समय राजारामजी के होंठ केवल ईश्वर के नाम रटने में ही हिला करते थे | श्री राजारामजी अपने भोजन का आधा भाग नियमित रूप से कुत्तों को डालते थे | यह संसार का नियम है कि दुसरे का सुख किसी को अच्छा नही लगता है । राजाराम के भोजन के सुख से नार्इ सुखी नही रहता था । एक दिन नार्इ ने शिकायत कर ठाकुर को कह डला कि वह हाली अन्न का नुकशान करता है । इसकी शिकायत ठाकुर से होने पर 12 रोटियों के स्थान पर 6 रोटिया ही देने लगे, फिर 6 मे से 3 रोटिया महाराज, कुत्तों को डालने लगे, तो 3 में से 1 रोटी ही प्रतिदिन भेजना शुरू कर दिया, लेकिन फिर भी भगवन अपने खाने का आधा हिस्सा कुत्तों को डालते थे |
इस पर ठाकुर ने विचार किया की राजारामजी को वास्तव में एक रोटी प्रतिदिन के लिये कम ही हैं और किसी भी व्यक्ति को जीवित रहने के लिए ये काफी नहीं हैं अतः ठाकुर ने भोजन की मात्रा फिर से निश्चित करने के उद्धेश्य से राजाराम जी को भोजन के लिए घर पर आकर खाने का हुकुम दिया 
शाम के समय श्री राजाराम जी ईश्वर का नाम लेकर ठाकुर के यहाँ भोजन करने गए | श्री राजारामजी ने बातों ही बातों में 15 किलो आटे की रोटिया आरोग ली पर आपको भूख मिटने का आभास ही नहीं हुआ | ठाकुर और उनकी की पत्नी यह देख अचरज करने लगे | फिर आखिर में ठाकुर साहब ने राजारामजी को एक तुलसी के पते का पान कराया तभी उनकी भूख शांत हो गयी तभी ठाकुर को ज्ञान हो गया की ये कोई साधारण इंसान नहीं है बल्कि कोई दिव्य अवतारी पुरुष है |
 उसी दिन शाम से राजारामजी हाली का काम छोड़कर तालाब पर जोगमाया के मंदिर में आकर राम नाम रटने लगे | उधर गाँव के लोगो को चमत्कार का समाचार मिलने पर उनके दर्शनों के लिए ताँता बंध गया |
दुसरे दिन राजारामजी ने द्वारिका का तीर्थ करने का विचार किया और दंडवत करते हुए द्वारिका रवाना हो गए | 5 दिनों में शिकारपुरा से पारलू पहुंचे और एक पीपल के पेड़ के नीचे हजारो नर-नारियो के बिच अपना आसन जमाया और उनके बिच से एकाएक इस प्रकार से गायब हुए की किसी को पता ही नहीं लगा | श्री राजारामजी 10 माह की द्वारिका तीर्थ यात्रा करके शिकारपुरा में जोगमाया के मंदिर में प्रकट हुए और अद्भुत चमत्कारी बाते करने लगे, जिन पर विश्वास कर लोग उनकी पूजा करने लग गए | राजारामजी को लोग जब अधिक परेशान करने लग गये तो 6  मास का मोन रख लिया | जब राजारामजी ने शिवरात्री के दिन मोन खोला तब लगभग 80 हजार वहां उपस्थित लोगो को उपदेश दिया और अनेक चमत्कार बताये जिनका वर्णन जीवन चरित्र नामक पुस्तक में विस्तार से किया गया हैं |
महादेवजी के उपासक होने के कारण राजारामजी ने शिकारपुरा में तालाब पर एक महादेवजी का मंदिर बनवाया, जिसकी प्रतिष्ठा करते समय अनेक भाविको व साधुओ का सत्कार करने के लिए प्रसाद के स्वरूप नाना प्रकार के पकवान बनाये जिसमे 250 क्विंटल घी खर्च किया गया | उस मंदिर के बन जाने के बाद श्री राजारामजी के बड़े भाई श्री रगुनाथारामजी जमात से पधार गये और 2 साल साथ तपस्या करने के बाद श्री रगुनाथारामजी ने समाधी ले ली | बड़े भाई की समाधी के बाद राजारामजी ने अपने स्वयं के रहने के लिए एक बगेची बनाई, जिसको आजकल श्री राजारामजी आश्रम के नाम से पुकारा जाता हैं|

  चमत्कारी संत अवतारी पुरुष श्री राजाराम जी महाराज त्रिकालदर्षी संत थे । भविष्य में झांक लेने की उनमे अदभुत क्षमता थी । एक घटना इस सत्य को प्रमाणित करने के लिए काफी है । सांमतशाही का दौर था । देशी शासक मौज कर रहे थे , उन्हे अपनी रियासते सुरक्षित प्रतित होती थी लेकिन राजाराम जी को कही कुछ खटक रहा था । उन्हे देशी रियासतो का भविष्य अच्छा नही दिखर्इ पड़ रहा था ।
राजाराम जी ने कहा था- जागीरी जाएगी , जरूर जाएगी । राजाराम जी की यह भविश्यवाणी अक्षरष: सत्य सिध्द हुर्इ । सभी राजे - रजवाड़ो को भारत के  गृहमंत्री सरदार वल्लभार्इ पटेल के समक्ष समर्पण करना पड़ा ।

श्री राजारामजी महाराज ने संसारियों को अज्ञानता से ज्ञानता की ओर लाने के उद्धेश्य से बच्चों को पढाने-लिखाने पर जोर दिया | जाती, धर्म, रंग आदि भेदों को दूर करने के लिए समय-समय पर अपने व्याखान दिये | बाल विवाह, कन्या विक्रय, मृत्युभोज जैसी बुराईयों का अंत करने का अथक प्रयत्न किया | राजारामजी ने लोगो को नशीली वस्तुओ के सेवन से दूर रहने, शोषण विहीन होकर धर्मात्न्माओ की तरह समाज में रहने का उपदेश दिया |राजारामजी एक अवतारी महापुरुष थे, इस संसार में आये और समाज के कमजोर वर्ग की सेवा करते हुए, श्रावण वद १४(14) संवत २००० को इस संसार को त्याग करने के उद्धेश्य से जीवित समाधि ले ली |
 आज श्री राजारामजी महाराज को श्री राजेश्वर भगवान के नाम से भी जाना जाता है और गुरूजी का शिकारपुरा में भव्य मंदिर भी है जहा हजारो की संख्या में श्रदालु दर्शन हेतु आते है |

     जय राजेश्वर भगवान की ..

July 02, 2019

आंजना समाज के सामाजिक संस्थान

आंजना समाज के सामाजिक संस्थान









राजस्थान
जिला- जोधपुर

1. श्री राजाराम आंजना आश्रम ट्रस्ट, शिकारपुरा  जोधपुर (राजस्थान) 
   नोट- ये आश्रम रेलवे स्टेशन लूनी जंक्शन से पॉँच किलोमीटर और जोधपुर     
   पाली रोड मार्ग पर कांकाणी से चार किलोमीटर दूर हैं |

2. श्री राजाराम सेवा संस्थान
    114, सेंट पेट्रिक्स स्कूल रोड, जोधपुर-342003
    नोट- इस संस्था में आधुनिक सुविधा वाला छात्रालय हैं और रहने की सुविधा तथा पुस्तकालय भी हैं |

3. पटेल ग्राम सेवा संस्थान पटेल न्याती भवन,
    पांचवी रोड, जोधपुर-342003
    नोट- इस संस्था में समाज के लोगो के रहने के लिए उत्तम व्यवस्था हैं |

4. देवाराम शिक्षण संस्थान एवं छात्रावास
   पाल रोड, जोधपुर
   नोट- 1 से 12 तक विद्यालय व् छात्रावास की उत्तम व्यवस्था हैं |

5. श्री राजेश्वेर विकास समिति.
     खेमे का कुँआ, जोधपुर |

6. संत श्री देवारामजी सेवा संसथान,
     शिकारपुरा रोड सालावास.

7. श्री अंजाना पटेल समाज विकास समिति, सिणली, जोधपुर.

8. श्री राजारामजी सेवा संसथान
    चितला, धवा.

9. श्री राजारामजी महाराज बगेची
    झंवर, तहसील- लूनी, जोधपुर.

10. श्री पटेल समाज विकास समिति,
      रोहिचा खुर्द, तहसील- लूनी.

11. श्री देवाराम सेवा संसथान,
      मोगरा पाली रोड, जोधपुर.

12. श्री पटेल नवयुवक मंडल,
      चर, तहसील- लूनी

जिला- पाली

1. पटेल छात्रावास केरिया दरवाजा, मंडिया रोड पाली (राजस्थान) |

2. श्री अंजनी माता मंदिर
   चेंडा, तह- रोहट, पाली

3. संत श्री मालारामजी महाराज मंदिर,
     बिन्जा, तह- रोहट, पाली.

4. श्री राजारामजी शिक्षण संस्थान,
     रोहट, पाली.

जिला- जालोर

1. श्री राजारामजी छात्रावास,
     आहोर रोड जालोर.

2. श्री राजारामजी छात्रावास,
      भीनमाल .

3. श्री राजारामजी छात्रावास,
      रानीवाडा.

4. श्री राजारामजी छात्रावास,
      सांचौर.

5. श्री राजारामजी छात्रावास,
      आहोर.

जिला- बाड़मेर

1. संत श्री राजारामजी मानव सेवा अस्पताल,
     कल्यानपुर मैन रोड, बाड़मेर .

2. श्री राजारामजी छात्रावास,
     समदडी रोड, बालोतरा.

3. श्री पटेल नयति भवन,
     समदडी

4. श्री राजारामजी छात्रावास,
     सिवाना

5. श्री राजारामजी छात्रावास,
     गुडामालानी.

6. श्री राजाराम द्वारिका गमन विश्राम स्थल,
     तहसील- पचपदरा.

7. श्री राजारामजी व् हरिरामजी महाराज बगेची,
     ढीढच, तहसील- सिवाना.

जिला- सिरोही

1. श्री सिरोही जिला कलबी आंजना समाज संस्थान, 
     सिरोही.

2. श्री आंजना माता सेवा समिति,
     गुलाबगंज.

3. श्री कलबी आंजना सेवा सदन,
     रेवदार.

भीनमाल क्षेत्र

1. श्री राजाराम महाराज सेवा समिति,
    भीलवाडा.

2. श्री आंजना नवयुवक मंडल,
     छोटी सादड़ी, चितौड़.

3. श्री आंजना नवयुवक मंडल सेवा,
      प्रतापगड.

माउंट आबू

1. श्री अखिल आंजना महासभा
   कुम्भारिया डेरा के सामने, माउन्टाबू
   (यहाँ छात्रालय की व्यवस्था हैं)

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गुजरात

अहमदाबाद-गांधीनगर

1. श्री अखिल आंजणा केलवनी मंडल
   संचालित श्री रामजीभाई मोतीभाई देसाई छात्रावास, 10 बी कल्याण
   सोसाइटी, मिठारव्की, अहमदाबाद

2. श्री अखिल आंजना समाज सेवा मंडल, अहमदाबाद
   संचालित- श्री वकता भाई केशर भाई पटेल अतिथिगृह,
   लालभाईनी चोक, मांडवीनी चोक, माणक चोक, अहमदाबाद
   फ़ोन न. -2149928

3. श्री अखिल आंजना समाज सेवा मंडल,
   संचालित- श्री नाथू भाई, महादेव भाई चौधरी अतिथिगृह,
   जीवराम मास्टर की चाव (chowl) के पास बालभवन के सामने,
   असारवा, अहमदाबाद, फ़ोन न. - 375172

4. श्री अखिल आंजना समाज सेवा मंडल, अहमदाबाद
   संचालित- श्री नाथू भाई, महादेव भाई चौधरी अतिथिगृह,
   पटेल बास चरबदी का खांचा, वि एस हॉस्पिटल के सामने, भाद्लपुर,
   अहमदाबाद

5. श्री अखिल आंजना युवा मंडल,
   ११ चोथी मंजिल, विनोद चेम्बर, हरियापुर
   तरवाजा के बाहर, अहमदाबाद-४
   फ़ोन न. - 338686, 339211

6. श्री अखिल आंजणा केलवनी मंडल, गांधीनगर
     संचालित- श्री जे एम चौधरी कन्या विद्यालय और रतन बेन चौधरी छात्रालय तथा महिला आर्ट्स
     कॉलेज
    सेक्टर-7. गांधीनगर
    फ़ोन न.-21306, 21307

बनास कांठा

1. श्री बनासकांठा आंजणा पटेल केलवनी मंडल
   संचालित- कक्षा १ से १२ तक स्कूल, कुमार और कन्या छात्रावास, b.c.a कॉलेज.
   सोनारिया बंगला के पास, देरी रोड, पालनपुर, जिला- बनासकांठा
   फ़ोन न.- 54241, 60847, 60846.

2. श्री अखिल आंजना चौधरी युवा परिवार,
   c/o - पटेल बोर्डिंग, सोनारिया बंगला के पास, देरी रोड, पालनपुर, जिला- बनासकांठा

3. श्री चौधरी छात्रावास
   पेट्रोल पम्प के पीछे, मु. ता.- धानेरा, जिला- बनासकांठा

4. स्वामी विवेकानंद हाई स्कूल
   पेट्रोल पम्प के पीछे, मु. तह.- धानेरा, जिला- बनासकांठा

5. आंजणा पटेल छात्रावास
   मु.-शिरोही , तह.- कांकरेज जिला- बनासकांठा

6. आंजणा पटेल छात्रावास
   मु.- देवदर, जिला- बनासकांठा

7. आंजणा पटेल छात्रावास
   मु.- भाबर, तह.-देवदर, जिला- बनासकांठा

8. श्री अखिल आंजना समाज सेवा मंडल,
   संचालित- चौधरी विश्रांति गृह कान्त्तेश्वेर रोड
   मु. पो.- अम्बाजी, जिला- बनासकांठा

9. श्री चौधरी पटेल छात्रावास
     डायमंड सोसायटी हाईवे, दिसा

मेहसाना

1. श्री आंजना युवक मंडल
   c/o ;- आदर्श विद्यालय विसनगर

2. श्री सत्ताविश आंजना युवक मंडल
   c/o - मु . पो.- मनसा, तह.-विजापुर, जिला- महेसाणा

3. श्री चौधरी सेवा समाज
   c/o - आदर्श विद्यालय, चाटन, जिला- महेसाणा,

4. श्री अखिल आंजणा केलवनी मंडल, चाटन
   संचालित- आदर्श विद्यालय, कुमार और कन्या  छात्रावास, चाटन
   फ़ोन न- 20433

 5. श्री अखिल आंजणा केलवनी मंडल, विसनगर
   संचालित- आदर्श विद्यालय, विसनगर,     जिला-  महेसाणा
   फ़ोन न- 20163

 6. श्री दान्तोर युवक मंडल
   मु . पो.- रीरवाणी , तह.-खेशलू , जिला-महेसाणा

7. श्री अखिल आंजना युवक समाज मंडल,
    c/o - आदर्श विद्यालय, विसनगर

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मध्यप्रदेश

1. आंजना समाज महासभा
   किर्तिचोक, उज्जैन (मध्यप्रदेश)

2. आंजना धर्मशाला,
    कार्तिक चौक, उज्जैन

3. आंजना धर्मशाला,
    ओमकारेश्वर, खंडवा

4. श्री आंजना सेवा संस्थान
    झाबुआ

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महाराष्ट्र

1. श्री बनासकांठा चौधरी प्रगति मंडल ट्रस्ट
   संचालक - श्री हरी भाई, कानजी भाई अतिथिगृह ,
   2/3 जयेश अपार्टमेन्ट, चंदावरकर रोड, बोरीवली  (वेस्ट) मुंबई-92

2. श्री राजाराम पटेल (आंजना) सेवासंघ,
     धारावी, मुंबई.

3. श्री राजाराम पटेल (आंजना) सेवासंघ,
     वसई, मुंबई.

4. श्री राजाराम पटेल (आंजना) सेवासंघ,
      कालेवादी, पूना.

5. श्री राजाराम आंजना समाज विकास मंडल,
      नवी मुंबई.

6. श्री राजाराम पटेल (आंजना) सेवासंघ,
     भिवंडी.

7. श्री राजाराम पटेल (आंजना) सेवासंघ,
      नासिक.

8. श्री राजाराम पटेल (आंजना) सेवासंघ,
     लातूर.

9. श्री राजाराम पटेल (आंजना) सेवासंघ,
     कोल्हापुर

10. श्री राजाराम पटेल (आंजना) सेवासंघ, इचलकरंजी

11. श्री राजाराम पटेल (आंजना) सेवासंघ  रत्नागिरी.

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गोवा
1. श्री राजाराम पटेल (आंजना) सेवासंघ,
     पणजी गोवा .

2. श्री राजाराम पटेल (आंजना) संस्थान,
     पाडा 

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आँध्रप्रदेश

1. श्री राजाराम पटेल (आंजना) सेवासंघ,
    हैदराबाद.

2. श्री राजाराम पटेल (आंजना) सेवासंघ,
     पूर्वी गोदावरी जिला

3. श्री राजाराम पटेल (आंजना) सेवासंघ,
     कप्पडा

4. श्री राजाराम पटेल (आंजना) सेवासंघ,
     अनंतपुर.

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तमिलनाडु

 1. श्री राजाराम पटेल (आंजना) सेवासंघ,
     चेन्नई.

2. श्री राजाराम पटेल (आंजना) सेवासंघ,
    झारोड़

3. श्री राजाराम पटेल (आंजना) सेवासंघ,
     सेलम.

4. श्री राजाराम पटेल (आंजना) सेवासंघ,
     कोयम्बटूर

5. श्री राजाराम पटेल (आंजना) सेवासंघ,
     त्रिपुर.

6. श्री राजाराम पटेल (आंजना) सेवासंघ,
     नागरकोयल

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कर्नाटक

1. श्री राजाराम पटेल (आंजना) सेवासंघ,
    बेंगलोर.

2. श्री राजाराम पटेल (आंजना) सेवासंघ,
    तम्कुर.

3. श्री राजाराम पटेल (आंजना) सेवासंघ,
    हसन.

4. श्री राजाराम पटेल (आंजना) सेवासंघ,
    बलारी.

5. श्री राजाराम पटेल (आंजना) सेवासंघ,
    चिकमगलूर.

6. श्री राजाराम पटेल (आंजना) सेवासंघ,
    मेंगलोर.

7. श्री राजाराम पटेल (आंजना) सेवासंघ,
     कारवार.

8. श्री राजाराम पटेल (आंजना) सेवासंघ,
    शिमोगा.

9. श्री राजाराम पटेल (आंजना) सेवासंघ,
    हुबली.

10. श्री राजाराम पटेल (आंजना) सेवासंघ,
     चित्रदुर्गा, दावंगिरी

11. श्री राजाराम पटेल (आंजना) सेवासंघ ,
     बेलगाँव

12. श्री राजाराम पटेल (आंजना) सेवासंघ,
      मैसूर.

13. श्री राजाराम पटेल (आंजना) सेवासंघ,
      कोपल.

14. श्री राजाराम पटेल (आंजना) सेवासंघ,
      गंगावती.

15. श्री राजाराम पटेल (आंजना) सेवासंघ,
      रायचूर.

16. श्री राजाराम पटेल (आंजना) सेवासंघ,
      गदग.

July 02, 2019

पटेल समाज के धार्मिक स्थल

     पटेल समाज के धार्मिक स्थल :-














 1. आस्था का केंद्र श्री राजेश्वर धाम :-












 संत श्री राजारामजी महाराज आश्रम, शिकारपुरा, जोधपुर यह आश्रम राजस्थान के जोधपुर जिले के गाँव शिकारपुरा में स्थित है। इस आश्रम की स्थापना उन्नीसवीं शताब्दी में संत राजारामजी महाराज द्वारा की गयी
श्री राजाराम जी महाराज का आश्रम लूनी से 6 किमी दूर शिकारपुरा गॉव में प्रवेश करते ही आँजणा समाज की गौरव महिमा का परिचय उसके भव्य स्वरूप से हो जाता है । सर्वप्रथम शिकारपूरा तालाब पर ही राजारामजी द्वारा महादेवजी का मंदिर बनवाया गया था जिससे वर्तमान में राजारामजी का पुराना मंदिर कहा जाता है । तत्पश्चात एक बगीची का निर्माण करवाया गया था । जो आज एक भव्य एवं विस्तृत धाम का रूप ले चूका है और यह अब राजारामजी आश्रम के नाम से प्रसिद है । आज यह धाम आँजणा समाज का प्रतीक बन कर पुरे समाज को दिशा देने का रथ है । शिकारपुरा का जो वर्तमान स्वरूप है उसके पीछे समाज बन्धुओ का तो योगदान है ही किन्तु पूजनीय किशनारामजी की प्रेरणा और उनके परिश्रम को कम करके नहीं आका जा सकता ।
राजारामजी का आश्रम शिकारपुरा में एक बहुत बड़े भू-भाग पर फेला हुआ है । इस आश्रम में दो प्रवेश द्वार है एक प्रवेश द्वार लूणी शिकारपुरा मार्ग पर स्थित है जो सीधा मुख्य मंदिर तक ले जाता है और दूसरा प्रवेश सालावास शिकारपुरा मार्ग पर स्थित है मुख्य चोराहे से डेड किमी अन्दर जाने पर अभी हाल ही में निर्मित भव्य सत्संग भवन तक पहुचते है ।
राजारामजी आश्रम में मुख्य मंदिर राजारामजी का जीवित समाधी स्थल है जिसके साथ ही श्री राधा कृष्णा का मंदिर भी है। शिकारपुरा मंदिर अत्यंत ही भव्य तथा शांतिप्रदायक है , चारो और राजारामजी की जीवनी हस्त कला - कृतियो के माध्यम से दर्शाया गया है । इस मंदिर से ऊपर की और जाते ही श्री राधा कृष्णा का नवनिर्मित मंदिर है जिसकी छटा देखते ही बनती है ।
मंदिर के बायीं और बहुत बड़े भू- भाग में धर्मशाला का निर्माण कार्य लगभग पूरा हो चूका है ।यह धर्मशाला भविष्य में आश्रम में विश्राम स्थल के लिए बहुत लाभदायक सिद्ध होगी । इसी के साथ - साथ एक विशाल रसोई भवन भी निर्मित किया गया है । जो मेले के दौरान तथा अन्य दिवसों में आये हुए अतिथियों की सेवा में मुख्य भूमिका निभा रही है ।रसोई भवन के पास में ही बहुत बड़ी यज्ञशाला है जिसमे बड़ी मात्रा में यज्ञ - वेदिया बनाई गयी जो बहुत मनोरम आभा बिखेरती है यज्ञशाला के समीप एक मंदिर तथा एक पानी की टंकी भी है ।
इस मंदिर के दायी और एक बहुत बड़ी गौशाला है जिसमे काफी संख्या में गौमाताये है जिनकी अच्छे प्रकार से सेवा सुश्रषा की जाती है दिन के समय में गायो को चराने के लिए खेतो में ले जाया जाता है , गौशाला के समीप ही पक्षियों के लिए चबूतरे का निर्माण कराया गया है जहा पर अनेको अन्न आदि दिया जाता है आश्रम में वर्तमान में विशाल सत्संग [ सभा ] भवन का निर्माण करवाया गया है ,जहा श्री किशनारामजी महाराज के सानिध्य में सत्संग होते थे और अब वर्तमान गादिपति श्री दयारामजी महाराज की निश्रा में सारे कार्यकर्म संपन होते है।इस भवन की शिल्प-कला अत्यंत मनोरम है इस पुरे आश्रम में फेली हुई हरियाली बहुत सुखद अनुभव देती है ।
इस आश्रम की सबसे बड़ी विशेषता यह है की यहाँ पर आनेवाले श्रदालुओ की .. की जाने वाली सेवा तथा अतिथि सत्कार बहुत सहारनीय है। श्रदालु वर्तमान गादीपति श्री दयारामजी महाराज का सामीप्य पाकर अपने आप में धन्य मानते है यहाँ पर श्रदालुओ के ठहरने के लिए विश्राम घर भी है, यहाँ आने वाले हर श्रदालु को चाय, गाय का दूध, दही,भोजन,अल्पाहार आदि की व्यवस्था से अतिथि सत्कार किया जाता है सभी सेवा करने वाले भी भक्तगण ही है। आश्रम में विशाल अन्न भंडार है जिसका उपयोग श्रदालुओ के लिए किया जाता है।पुरे आश्रम की व्यवस्था यहाँ पर बनी हुई प्रन्यास सिमिति देखती है जिसका कार्यालय भी आश्रम में ही स्थित है।
जून 2011 में समाधी मंदिरों का प्रतिष्ठा महोत्सव धूमधाम से संपन हुआ । इस प्रतिष्ठा महोत्सव में लगभग 12 लाख श्रदालु उपस्थित थे ब्रह्मलीन देवारामजी महाराज एवम किशनारामजी महाराज की समाधी पर नवनिर्मित मंदिर की मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा के ऐतिहासिक समारोह ने प्रदेश ही नहीं बल्कि पुरे देश के मानचित्र पर शिकारपुरा आश्रम की गूंज फ़ेला दी । प्रतिष्ठा महोत्सव को देखते हुए हाल ही में कई नये निर्माण भी करवाए है ।




  2.आस्था का केंद्र श्री चेंडा मंदिर








 संत श्री राजारामजी महाराज आश्रम, चेंडा, पाली
यह आश्रम राजस्थान के पाली जिले के गाँव चेंडा में स्थित है | चेंडा गाँव पाली शहर से करीब 49 किलोमीटर की दुरी पर स्थित हैं |
भाव आस्था से महापुरुषों की यादगिरी में पवित्र स्थानों का निर्माण होता हैं । इसी सन्दर्भ में संवत २००० श्रावण वद १४ को भगवान श्री 1008 राजारामजी के समाधी ग्रहण करने के बाद उनकी पाटवी शिष्या श्री हंजा बाई जी ने अपने गुरु की सेवा साधना हेतु चेंडा गांव में आसन ग्रहण किया । चेंडा गांव के भगवत प्रेमियों के योगदान से उक्त गांव के तालाब के किनारे भव्य मंदिर का निर्माण करवाया गया जो श्री राजारामजी महाराज की बगेची के नाम से प्रख्यात है । उक्त पवित्र स्थान की प्रतिष्ठा संवत 2015  वैशाख सुद्र 13 के 24 गांवो के संत महंत खोड़ जितडा को रसोई देकर की गई । उक्त स्थान का कार गुजार भाव भक्ति से आकाश व्रती पर चल रहा हैं । हंजाबाई ने भगवान श्री राजारामजी का जन्म दिन प्रकट करने के लिये उक्त स्थान पर रामनवंमी को मेला लगाने की संपूर्ण व्यवस्था की जाती है। यह मेला प्रतिष्ठा समय से लगातार लग रहा हैं । जिसमें चैत्र शुक्ल अष्टमी की रात्री को विशाल संत सांगत का आयोजन प्रति वर्ष किया जाता हैं । उक्त मंदिर के प्रति गांव वासियों की हार्दिक आस्था हैं । एवं उनका योगदान सराहनीय हैं । यह स्थान हंजाबाई संरक्षण के प्रगति का प्रतिक हैं । और वर्तमान में गादिपति श्री भगवती बाई जी के सानिध्य में यहाँ पर आने वाले श्रदालुओ के लिए चाय-पानी , दुध और उचित भोजन की उत्तम व्यवस्था की जाती है ।



3. अंजनी माता मंदिर, चेंडा, पाली

 यह आश्रम राजस्थान के पाली जिले के गाँव चेंडा(नया) में स्थित है | चेंडा गाँव पाली शहर से करीब 52 किलोमीटर की दुरी पर स्थित हैं |

4. संत श्री माला राम जी महाराज आश्रम, बिन्जा, पाली
 यह आश्रम राजस्थान के पाली जिले के गाँव बिन्जा में स्थित है | बिन्जा गाँव पाली शहर से करीब 35 किलोमीटर की दुरी पर स्थित हैं |


 5 . संत राजा राम मंदिर, लुम्बा की ढाणी, जालौर

 यह मंदिर लुम्बा की ढाणी के लोगों द्वारा बनाया गया है | यहाँ हर साल रामनवमी को मेले का आयोजन होता है.

  6. संत राजारामजी मंदिर, तालियाना, जालौर

 यह मंदिर संत ओखा राम जी के द्वारा बनाया गया हैं | जो भगवान कृष्ण की उपासना और संत राजा राम जी महाराज के शिष्य थे |

  7 .माता अर्बुदा देवी मंदिर, माउंटआबू

 यह मंदिर माउंट (राजस्थान) में स्थित है |

  8.संत राजारामजी मंदिर ,पारलू (बाड़मेर)

 यह मंदिर बाड़मेर के पारलू गाव में स्थिति है।













July 02, 2019

आंजणा समाज की गौत्रें

                  

                  आंजणा समाज की गौत्रें


              


1. अजगल
2. अटार
3. अलवोणा
4. अगीयोरी
5. अंट
6. अनाड़ी
7. अपलोण
8. अभग
9. अटोस
10. आईडी
11. आवड़ा
12. आकोदिया
13. आमट
14. आंटिया
15. सोसीतिया
16. ओहरा
17. ओड़
18. ओठवाणा
19. उदरा
20. उजल
21. उवड़ा
22. ऊबड़ा
23. करवट
24. करड़
25. करण
26. कडुआ
27. कणोर
28. कमालिया
29. कहावा
30. काल
31. कच्छवाह
32. काला
33. काग
34. काटाकतरिया
35. किशोर
36. कुरंद
37. कुणिया
38. कुकान
39. कुंकल
40. कुवा
41. कुहांत
42. कुओल
43. कुपंलिया
44. कुंकणा
45. कैड
46. कोया
47. कोयला
48. कोंदला
49. कोंदली
50. कोरोट
51. कोहरा
52. खरसोण
53. खागड़ा
54. खांट
55. खींची
56. खुरसोद
57. गया
58. गारिया
59. गालिया
60. गघाऊ
61. गागोड़ा
62. गामी
63. गुडल
64. गुर्जर
65. गोगडू
66. गोली
67. गोया
68. गौर
69. गोहित
70. गोटी
71. गोदा
72. गोयल
73. घेंसिया
74. चावड़ा
75. चोल
76. चौथ्या
77. जड़मल
78. जड़मत
79. जगपाल
80. जाट
81. जागी
82. जींबला
83. जुवा
84. जूना
85. जुकोल
86. जुडाल
87. जेगोड़ा
88. जोपलिया
89. गड़
90. टोंटिया
91. ढढार
92. डाबर
93. डेल
94. डकोतिया
95. डांगी
96. डोडिया
97. डोजी
98. ठांह
99. गेवलिया
100. तरक
101. तवाडिया
102. तितरिया
103. वुगड़ा
104. तुरंग
105. तेजुर्वा
106. दीपा
107. घंघात
108. घुणिया
109. घुड़िया
110. घोलिया
111. घोबर
112. गण
113. नावी
114. नायी
115. नाड़ीकाल
116. नूगोल
117. नावर
118. परमार
119. परिहार
120. पवया
121. पानचातारोड़   
122. पाविया
123. पावा
124. पाकरिया
125. पिलातर
126. पिलासा
127. पुलिया
128. पौण
129. कहावा
130. फक
131. फुकावट
132. फुंदारा
133. फोकरिया
134. बुग
135. बग
136. बड़वाल
137. बला
138. बरगडया
139. बुगला
140. बुबकिया
141. बूबी
142. बेरा
143. बोका
144. बोया
145. भुजवाड़
146. भगत
147. भेतरेट
148. भदरूप
149. भटार
150. भतोल
151. भाटिया
152. भार्गव
153. भीत
154. भूंसिया
155. भूतड़ा
156. भुदरा
157. भूरिया
158. भूचेर
159. भूंगर
160. भोमिया
161. भैंसा
162. भोड़
163. भोंग
164. मरूवालय
165. मसकरा
166. महीआ
167. मईवाड़ा
168. मनर
169. मालवी
170. मावल
171. मुजल
172. मुड़क
173. मुजी
174. मेहर
175. मोर
176. यादव
177. राठौड़
178. रातड़ा
179. रावण
180. रावता
181. रावक
182. रावाडिया
183. राकवा
184. रामातर
185. रूपावट
186. रोंटिया
187. लखात
188. लाफा
189. लाखड़या
190. लाड़्वर
191. लूदरा
192. लोया
193. लोल
194. लोगरोड़
195. वक
196. वला
197. बहिया
198. वणसोला
199. वलगाड़ा
200. बागमार
201. वीसी
202. वेलाकट
203. शिहोरी
204. सरावग
205. समोवाज्या
206. सासिया
207. साकरिया
208. सांडिया
209. सायर
210. सांसावर
211. सेघल
212. सिलोणा
213. सीह
214. सीतपुरिया
215. सुरात
216. सुशला
217. सुंडल
218. सुजाल
219. सेड़ा
220. सोपीवल
221. सोलंकी
222. सौमानीया
223. संकट
224. हरणी
225. हड़ुआ
226. हडमंता
227. हाडिया
228. हिरोणी
229. हुण
230. होवट
231. होला
232. गाडरिया


233. सुराला 
July 02, 2019

आँजणा समाज का इतिहास

      आँजणा समाज का इतिहास :--




  आँजणा समाज, चौधरी, पटेल, कलबी या पाटीदार समाज के नाम से भी जाना जाता है। आँजणा समाज की कुल २३२ गोत्रे हैं। भारत में राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश में निवास करने वाली एक हिंदू जाति है। इसमें भी विशेष रूप से गुजरात और राजस्थान, और राजस्थान में जागीरदार, जमींदार या Chudhary ओर पटेल के रूप में जाना जाता है। अंजना चौधरी की जाति के गुरु संत श्री राजाराम जी महाराज (विष्णु के अवतार) है। जिनका भव्य मंदिर और आश्रम जोधपुर के पास, शिकारपुरा राजस्थान (लूनी) में हैं। भव्य बादशाही भूतकाल धरानी आँजणा जाति का इतिहास गौरान्वित हैं ।

  आँजणा कि उत्पति :--
 आँजणा कि उत्पति के बारे में विविध मंतव्य/दंत्तकथाये प्रचलित हैं। जैसे भाट चारण के चोपडे में आँजणा समाज के उत्पति के साथ सह्स्त्राजुन के आठ पुत्रो कि बात जोड़ ली है । जब परशुराम शत्रुओं का संहार करने निकले तब सहस्त्रार्जुन के पास गए । युद्घ में सहस्त्रार्जुन और उनके 92 पुत्रो की मृत्यु हो गयी ।आठ पुत्र युध्भूमि छोड के आबू पर माँ अर्बुदा की शरण में आये।अर्बुदा देवी ने उनको रक्षण दिया । भविष्य मैं वो कभी सशत्र (हथियार) धारण न करे उस शर्त पर परशुराम ने उनको जीवनदान दिया ।उन आठ पुत्रो मैं से दो राजस्थान गए ।उन्होंने भरतपुर मैं राज्य की स्थापना की उनके वंसज जाट से पहचाने गए । बाकि के छह पुत्र आबू मैं ही रह गए वो पाहता अंजन के जैसे और उसके बाद मैं उस शब्द का अप्ब्रंश होते आँजणा नाम से पहचाने गए ।
वे देवी के अनुयायी थे, क्योंकि यह जाति के नाम की उत्पत्ति देवी अंजनी माता, भगवान हनुमान की माता से आता है कि माना जाता है। माउंट आबू में देवी Arbuda अंजना चौधरी की kuldevi है।
सोलंकी राजा भीमदेव पहले की पुत्री अंजनाबाई ने आबू पर्वत पर अन्जनगढ़ बसाया और वहां रहनेवाले आँजणा कहलाये ।मुंबई मैं गेझेट के भाग १२ मैं बताये मुजब इ. स. ९५३ में भीनमाल मैं परदेशियों का आक्रमण हुआ, तब कितने ही गुजर भीनमाल छोड़कर अन्यत्र गए । उस वक्त आँजणा पटिदारो के लगभग २००० परिवार गाडे में भीनमाल का निकल के आबू पर्वत की तलेटी मैं आये हुए चम्पावती नगरी मैं आकर रहने लगे । वहां से धाधार मे आकर स्थापित हुए, अंत मे बनासकांठा ,साबरकांठा ,मेहसाना और गांधीनगर जिले मे विस्तृत हुए ।
सिद्धराज जयसिंह इए .स . 1335-36 मैं मालवा के राजा यशोवर्मा को हराकर कैद करके पटना में लकडी के पिंजरे मे बंद करके घुमाया था।मालवा के दंडनायक तरीके दाहक के पुत्र महादेव को वहिवाट सोंप दिया ।तब उत्तर गुजरात मे से बहुत से आँजणा परिवार मालवा के उज्जैन प्रदेश के आस -पास स्थाई हुए है ।वो पाटन आस पास की मोर, आकोलिया , वगदा ,वजगंथ,जैसी इज्जत से जाने जाते हैं ।आँजणा समाज का इतिहास राजा महाराजो की जैसे लिखित नहीं हैं ।धरती और माटी के साथ जुडी हुई इस जाती के बारे मैं कोई सिलालेखो मे बोध नहीं है।खुद के उज्जवल भविष्य के लिए श्रेष्ठ मार्गद है।
इस समाज के लोग मुख्य रूप से राजस्थान , गुजरात,मध्य प्रदेश ( मेवाड़ एवं मारवाङ क्षेत्र ) में रहते हैं ।आँजणा समाज का मुख्य व्यवसाय कृषि और पशुपालन है। आँजणा समाज बहुत तेजी से प्रगति कर रहा है एवं आजादी के बाद यह परिपाटी बदल रही है। समाज के लोग सेवा क्षेत्र और व्यापार की ओर बढ रहे हैं।इस समय समाज के बहुत से लोग,महानगरों और अन्य छोटे - बड़े शहरों मे कारखानें और दुकानें चला रहे है।आँजणा समाज के बहुत से लोग सरकारी एवं निजी सेवा क्षेत्र में विभिन्न पदों पर जैसे इंजीनियर, डॉक्टर, वकील, अध्यापक, प्रोफेसर और प्रशासनिक सेवाओं जैसे आईएएस, आईएफएस आदि में हैं।
आँजणा समाज में कई सामाजिक,धार्मिक और राजनीतिक नेताओं ने जन्म लिया

 जाति गुरू-संत श्री राजाराम जी महाराज:-


 अठारहवीं सदी में महान संत श्री राजाराम जी महाराज ने आँजणा समाज में जन्म लिया ।उन्होंने समाज में अन्याय ( ठाकुरों और राजाओं द्वारा ) और सामाजिक कुरितियों के खिलाफ जागरूकता पैदा की।उन्होंने समाज में शिक्षा के महत्व पर भी जोर दिया। आँजणा समाज की सनातन( हिन्दू ) धर्म में मान्यता है।आँजणा समाज में अलग अलग समय पर महान संतों एवं विचारकों ने जन्म लिया हैं।इन संतो एवं विचारकों ने देश के विभिन्न हिस्सों में कई मंदिरों एवं मठों का निर्माण भी करवाया

  श्री शिकारपुरा आश्रम:--



  शिकारपुरा आश्रम लूनी से लगभग 6 किमी की दूरी पर स्थित है। लूनी राजस्थान के जोधपुर जिले में एक तहसील है। इस आश्रम उन्नीसवीं सदी में संत राजा राम जी महाराज द्वारा स्थापित किया गया था।
शिकारपुरा आश्रम के महंतों हैं: संत देवा राम जी महाराज, संत Kishna राम जी महाराज व गुरू Sujaramji महाराज, संत दयाराम। आश्रम अपनी स्थापना से समाज की सेवा करने के लिए जारी है।
                             
     आँजणा कलबी समाज का वर्ण :--




 आज से करीब करीब  ढाई तीन हजार वर्ष पूर्व की बात हैं हमारे देश में आर्यो का युग था । उस समय के वैदिक आर्यो के समाज के अपने वर्ण थे और वैदिक आर्यो के चार वर्णो में एक वर्ण था क्षत्रिय वर्ण, उनके क्षत्रिय वर्ण में हमारे पुरखो की गणना की जाती थी। उनके काल में जब युद्ध होते थे आपसी लड़ाईयाँ होती थी तब क्षत्रिय कहलाने वाले हमारे पूर्वज योद्धा बनकर अपनी सेवा देते थे । लेकिन जब शांति का समय होता था ,तब वो लोग अपना पेट पालने के लिए , अपनी रोजी रोटी कमाने के लिए और सभी की सेवा के लिए अन्न उत्त्पन्न करने का कार्य करते थे ,और अन्न उत्तपन्न करना ,हल चलाना ,खेती करने के लिए उनका मुख्य औजार हल था  तो उन्हें हली क्षत्रिय के नाम से पुकारा जाने लगा।  और वो एक ऐसा वक्त था जब भारत का ईरानी लोगो के साथ संपर्क होना शुरु हो गया था , उनके आपसी संपर्क और भाषा का तालमेल था , ईरानी लोग खेती के औजार हल को कुलबा बोलते थे .और उन्होंने हमारे पुरखो को हली क्षत्रिय की जगह कुलबी क्षत्रिय कहना शुरु कर दिया ! उस समय जैसे जैसे उनकी जनसंख्या बढ़ती गई तो अपनी रोजमर्रा की जिंदगी को जारी रखते हुए अपना पेट पालने के लिए घूमते फिरते गुजरात की और रुख किया और गुजरात की किसी आजन्यु यानी की अजान भूमि पर पहुंच गए और वहा रहकर अपनी आजीविका शुरु की! धीरे धीरे उस अजान  भूमि पर उन्होंने अपना सामज्य स्थापित किया और ब्रजपाल को अपना राजा बनाया ! मध्य काल की शुरुआत हो चुकी थी ! जनसंख्या बढ़ने लगी तो वहां से उठ कर कुछ पुरखो ने अजान प्रदेश के उत्तर यानि की राजस्थान की तरफ रुख किया और मारवाड़ क्षेत्र के श्रीमाल भाग पर जो की राजस्थान के जालोर जिला के भीनमाल के आसपास का क्षेत्र माना जाता हे ! वहां पहूँचकर अपना बसेरा डाला और अपनी आजीविका प्रारम्भ की  इधर के लोगो ने इन्हे अजान भू भाग से आने के कारण उन्हें अजान कहा !
ऐसा होना भी स्वाभाविक था क्यों की आज भी हम जो गुजरात से आता हे उसे गुजराती और पंजाब से आता हे वो पंजाबी आदि कहते हैं !  तो इस तरह हमारे पूर्वजो के यहाँ तक पहुँचते पहुँचते "अजान  कुलबी क्षत्रिय" कहा जाने लगा था, और इसके बजाय की उन्होंने क्षत्रिय कर्मो को पूर्ण रूप से त्याग दिया और हल चलना ही अपना मुख्य कर्म बना लिया उसे ही अपनी आजीविका का साधन बना लिया  , धीरे धीरे पुरे राजस्थान ,मध्य प्रदेश और गुजरात तीन राज्यों में  फेल गए और बदलती परिस्थितियों के साथ साथ समाज के काम काज में भी कुछ बदलाव आया और इन्होने व्यापार की तरफ भी रुख किया और इस क्षेत्र में भी अपनी अच्छी पहचान बना चुके हैं आज खेती , व्यापार , सरकारी नौकरी , सेवा ,  हर जगह कलबी पटेल समाज की अच्छी पकड़ हैं आज लगभग पुरे भारत के हर कोने में अपना व्यापार फैलाए हुए हैं, और समय बदलने के साथ साथ कुलबी क्षत्रिय की जगह "आँजणा कुलबी" को ही अपना नाम परिचय रखा कर अपनी पहचान आँजणा कुलबी से ही देने लगे .अतः कुलबी शब्द एक अपभ्रंश शब्द हे तो कुलबी को सिर्फ कलबी ही बोला जाने लगा और "आँजणा कुलबी" की जगह "आँजणा कलबी" ही रह गया .! इस तरह  ग्रंथो में लिखित उलेख बताता हे की आज से लगभग ढाई तीन हजार साल पहले हमारे पूर्वजो को "कलबी क्षत्रिय" के नाम से जाना जाने लगा था और करीब करीब १४०० वर्ष पूर्व वो  आंजना कुलबी के नाम से अपनी पहचान बना चुके थे ! कही कही कुर्मी और कुलबी शब्द का भी काफी जोड़ तोड़कर उल्लेख हे पर वैसे देखा जाये तो दोनों ही शब्द एक हे और इनका काम और मकसद भी एक ही था और हे , खेती करने वाले ! भारत में लगभग 1488  तरह के कुलबियो के होने का उल्लेख हे  जो को हमारी आँजणा कलबी समाज की ही तरह कई तरह की शाखाओ  में विभक्त हे उनका भी उल्लेख हे की उनकी भी उत्पत्ति क्षत्रिय वर्ण से हुई मानी जाती हे पर उनकी वर्ण ,,गोत्र ,,नख हमसे और हमारी समाज से काफी भिन्नता रखते हे ! लेकिन हमारी हमारे क्षत्रिय वर्ग को कुल चौदह शाखाओ में यानि की वर्णो में विभाजित किया गया हे  जो हे ..१. चौहान २.तंवर ,३.चौड़ा ४. झाला ५. सोलंकी ६.सिसोदिया ७ यादव ८.परिहार ९. कच्छवाह १०.राठौर ११. गोयल १२. जेठवा १३. परमार और १४. मकवाना !और चौदह वर्णो को २५० गोत्र के रूप में विभाजित किया गया हे .जैसे ,, काग , कुकल ,कर्ड, कोदली ,बोका ,तरक,भोड़,धूलिया,दुनिया,मोर,मुजी,रातडा,ओड, वागडा,भूरिया, जुडाल,काला,कोदली,फक बूबी,,,केउरी ,,,,,,, ?
इस तरह हमारे समाज के सम्पूर्ण इतिहास के तोर पर हमारी नार्वो के तोर पर और हमारी गोत्रो के तोर पर ,,,सब को मध्येनजर रखते  हुए यह कहा जाना उचित ही होगा की हमारी उत्त्पत्ति वैदिक आर्यो के क्षत्रिय वर्ण से हुई हे !अतः हमें अपना  परिचय आँजणा कलबी नाम से देने में कोई अतिश्योक्ती नहीं होनी चाहिए !
                         !THANK YOU!

              Jai Shree Rajeshvar.Bhagavan
                  Jai Aanjana Maa




                   Prakash Choudhary 











July 02, 2019

जानिए राशि अनुसार जातक की ख़ास 15 बातें

जानिए राशि अनुसार जातक की ख़ास 15 बातें

                             परिचय


नाम के पहले अक्षर का काफी अधिक महत्व बताया गया है। पुरानी मान्यताओं के अनुसार व्यक्ति के जन्म के समय चंद्रमा जिस राशि में होता है, उसी राशि के अनुसार नाम का पहला अक्षर निर्धारित किया जाता है। चंद्र की स्थिति के अनुसार ही हमारी नाम राशि मानी जाती है। सभी 12 राशियों के लिए अलग-अलग अक्षर बताए गए हैं।
नाम के पहले अक्षर से राशि मालूम होती है और उस राशि के अनुसार व्यक्ति के स्वभाव और भविष्य से जुड़ी कई जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
यहां जानिए किस राशि के अंतर्गत कौन-कौन से नाम अक्षर आते हैं, किस राशि के व्यक्ति का स्वभाव कैसा है और किस राशि के लोगों की क्या विशेषता है... सभी 12 राशि के लोगों की 15-15 खास बातें...
                  
                                मेष


मेष- चू, चे, चो, ला, ली, लू, ले, लो, आ
राशि स्वरूप: मेंढा जैसा, राशि स्वामी- मंगल।
1. राशि चक्र की सबसे प्रथम राशि मेष है। जिसके स्वामी मंगल है। धातु संज्ञक यह राशि चर (चलित) स्वभाव की होती है। राशि का प्रतीक मेढ़ा संघर्ष का परिचायक है।
2. मेष राशि वाले आकर्षक होते हैं। इनका स्वभाव कुछ रुखा हो सकता है। दिखने में सुंदर होते है। यह लोग किसी के दबाव में कार्य करना पसंद नहीं करते। इनका चरित्र साफ -सुथरा एवं आदर्शवादी होता है।
3. बहुमुखी प्रतिभा के स्वामी होते हैं। समाज में इनका वर्चस्व होता है एवं मान सम्मान की प्राप्ति होती है।
4. निर्णय लेने में जल्दबाजी करते है तथा जिस कार्य को हाथ में लिया है उसको पूरा किए बिना पीछे नहीं हटते।
5. स्वभाव कभी-कभी विरक्ति का भी रहता है। लालच करना इस राशि के लोगों के स्वभाव मे नहीं होता। दूसरों की मदद करना अच्छा लगता है।
6. कल्पना शक्ति की प्रबलता रहती है। सोचते बहुत ज्यादा हैं।
7. जैसा खुद का स्वभाव है, वैसी ही अपेक्षा दूसरों से करते हैं। इस कारण कई बार धोखा भी खाते हैं।
8. अग्नितत्व होने के कारण क्रोध अतिशीघ्र आता है। किसी भी चुनौती को स्वीकार करने की प्रवृत्ति होती है।
9. अपमान जल्दी भूलते नहीं, मन में दबा के रखते हैं। मौका पडने पर प्रतिशोध लेने  से नहीं चूकते।
10. अपनी जिद पर अड़े रहना, यह भी मेष राशि के स्वभाव में पाया जाता है। आपके भीतर एक कलाकार छिपा होता है।
11. आप हर कार्य को करने में सक्षम हो सकते हैं। स्वयं को सर्वोपरि समझते हैं।
12. अपनी मर्जी के अनुसार ही दूसरों को चलाना चाहते हैं। इससे आपके कई दुश्मन खड़े हो जाते हैं।
13. एक ही कार्य को बार-बार करना इस राशि के लोगों को पसंद नहीं होता।
14. एक ही जगह ज्यादा दिनों तक रहना भी अच्छा नहीं लगता। नेतृत्व छमता अधिक होती है।
15. कम बोलना, हठी, अभिमानी, क्रोधी, प्रेम संबंधों से दु:खी, बुरे कर्मों से बचने वाले, नौकरों एवं महिलाओं से त्रस्त, कर्मठ, प्रतिभाशाली, यांत्रिक कार्यों में सफल होते हैं।


                                वृष


                      
वृष- ई, ऊ, ए, ओ, वा, वी, वू, वे, वो
राशि स्वरूप- बैल जैसा, राशि स्वामी- शुक्र।
राशि परिचय
1. इस राशि का चिह्न बैल है। बैल स्वभाव से ही अधिक पारिश्रमी और बहुत अधिक वीर्यवान होता है, साधारणत: वह शांत रहता है, किन्तु क्रोध आने पर वह उग्र रूप धारण कर लेता है।
2. बैल के समान स्वभाव वृष राशि के जातक में भी पाया जाता है। वृष राशि का स्वामी शुक्र ग्रह है।
3. इसके अन्तर्गत कृत्तिका नक्षत्र के तीन चरण, रोहिणी के चारों चरण और मृगशिरा के प्रथम दो चरण आते हैं।
4. इनके जीवन में पिता-पुत्र का कलह रहता है, जातक का मन सरकारी कार्यों की ओर रहता है। सरकारी ठेकेदारी का कार्य करवाने की योग्यता रहती है।
5. पिता के पास जमीनी काम या जमीन के द्वारा जीविकोपार्जन का साधन होता है। जातक अधिकतर तामसी भोजन में अपनी रुचि दिखाता है।
6. गुरु का प्रभाव जातक में ज्ञान के प्रति अहम भाव को पैदा करने वाला होता है, वह जब भी कोई बात करता है तो स्वाभिमान की बात करता है।
7. सरकारी क्षेत्रों की शिक्षा और उनके काम जातक को अपनी ओर आकर्षित करते हैं।
8. किसी प्रकार से केतु का बल मिल जाता है तो जातक सरकार का मुख्य सचेतक बनने की योग्यता रखता है। मंगल के प्रभाव से जातक के अंदर मानसिक गर्मी प्रदान करता है।
9. कल-कारखानों, स्वास्थ्य कार्यों और जनता के झगड़े सुलझाने का कार्य जातक कर सकता है, जातक की माता के जीवन में परेशानी ज्यादा होती है।
10. ये अधिक सौन्दर्य प्रेमी और कला प्रिय होते हैं। जातक कला के क्षेत्र में नाम करता है।
11. माता और पति का साथ या माता और पत्नी का साथ घरेलू वातावरण मे सामंजस्यता लाता है, जातक अपने जीवनसाथी के अधीन रहना पसंद करता है।
12. चन्द्र-बुध जातक को कन्या संतान अधिक देता है और माता के साथ वैचारिक मतभेद का वातावरण बनाता है।
13. आपके जीवन में व्यापारिक यात्राएं काफी होती हैं, अपने ही बनाए हुए उसूलों पर जीवन चलाता है।
14.  हमेशा दिमाग में कोई योजना बनती रहती है। कई बार अपने किए गए षडयंत्रों में खुद ही फंस भी जाते हैं।
15.  रोहिणी के चौथे चरण के मालिक चन्द्रमा हैं, जातक के अंदर हमेशा उतार-चढ़ाव की स्थिति बनी रहती है, वह अपने ही मन का राजा होता है।


                             मिथुन


मिथुन- का, की, कू, घ, ङ, छ, के, को, ह
राशि स्वरूप- स्त्री-पुरुष आलिंगनबद्ध, राशि स्वामी- बुध।
1. यह राशि चक्र की तीसरी राशि है। राशि का प्रतीक युवा दम्पति है, यह द्वि-स्वभाव वाली राशि है।
2. मृगसिरा नक्षत्र के तीसरे चरण के मालिक मंगल-शुक्र हैं। मंगल शक्ति और शुक्र माया है।
3. जातक के अन्दर माया के प्रति भावना पाई जाती है, जातक जीवनसाथी के प्रति हमेशा शक्ति बन कर प्रस्तुत होता है। साथ ही, घरेलू कारणों के चलते कई बार आपस में तनाव रहता है।
4. मंगल और शुक्र की युति के कारण जातक में स्त्री रोगों को परखने की अद्भुत क्षमता होती है।
5. जातक वाहनों की अच्छी जानकारी रखता है। नए-नए वाहनों और सुख के साधनों के प्रति अत्यधिक आकर्षण होता है। इनका घरेलू साज-सज्जा के प्रति अधिक झुकाव होता है।
6. मंगल के कारण जातक वचनों का पक्का बन जाता है।
7. गुरु आसमान का राजा है तो राहु गुरु का शिष्य, दोनों मिलकर जातक में ईश्वरीय ताकतों को बढ़ाते हैं।
8. इस राशि के लोगों में ब्रह्माण्ड के बारे में पता करने की योग्यता जन्मजात होती है। वह वायुयान और सेटेलाइट के बारे में ज्ञान बढ़ाता है।
9. राहु-शनि के साथ मिलने से जातक के अन्दर शिक्षा और शक्ति उत्पादित होती है। जातक का कार्य शिक्षा स्थानों में या बिजली, पेट्रोल या वाहन वाले कामों की ओर होता है।
10. जातक एक दायरे में रह कर ही कार्य कर पाता है और पूरा जीवन कार्योपरान्त फलदायक रहता है। जातक के अंदर एक मर्यादा होती है जो उसे धर्म में लीन करती है और जातक सामाजिक और धार्मिक कार्यों में अपने को रत रखता है।
11.  गुरु जो ज्ञान का मालिक है, उसे मंगल का साथ मिलने पर उच्च पदासीन करने के लिए और रक्षा आदि विभागों की ओर ले जाता है।
12. जातक अपने ही विचारों, अपने ही कारणों से उलझता है। मिथुन राशि पश्चिम दिशा की द्योतक है, जो चन्द्रमा की निर्णय समय में जन्म लेते हैं, वे मिथुन राशि के कहे जाते हैं।
13. बुध की धातु पारा है और इसका स्वभाव जरा सी गर्मी-सर्दी में ऊपर नीचे होने वाला है। जातकों में दूसरे की मन की बातें पढऩे, दूरदृष्टि, बहुमुखी प्रतिभा, अधिक चतुराई से कार्य करने की क्षमता होती है।
14. जातक को बुद्धि वाले कामों में ही सफलता मिलती है। अपने आप पैदा होने वाली मति और वाणी की चतुरता से इस राशि के लोग कुशल कूटनीतिज्ञ और राजनीतिज्ञ भी बन जाते हैं।
15. हर कार्य में जिज्ञासा और खोजी दिमाग होने के कारण इस राशि के लोग अन्वेषण में भी सफलता लेते रहते हैं और पत्रकार, लेखक, मीडियाकर्मी, भाषाओं की जानकारी, योजनाकार भी बन सकते हैं।


                                कर्क


कर्क- ही, हू, हे, हो, डा, डी, डू, डे, डो
राशि स्वरूप- केकड़ा, राशि स्वामी- चंद्रमा।
1. राशि चक्र की चौथी राशि कर्क है। इस राशि का चिह्न केकड़ा है। यह चर राशि है।
2. राशि स्वामी चन्द्रमा है। इसके अन्तर्गत पुनर्वसु नक्षत्र का अन्तिम चरण, पुष्य नक्षत्र के चारों चरण तथा अश्लेषा नक्षत्र के चारों चरण आते हैं।
3. कर्क राशि के लोग कल्पनाशील होते हैं। शनि-सूर्य जातक को मानसिक रूप से अस्थिर बनाते हैं और जातक में अहम की भावना बढ़ाते हैं।
4. जिस स्थान पर भी वह कार्य करने की इच्छा करता है, वहां परेशानी ही मिलती है।
5. शनि-बुध दोनों मिलकर जातक को होशियार बना देते हैं। शनि-शुक्र जातक को धन और जायदाद देते हैं।
6. शुक्र उसे सजाने संवारने की कला देता है और शनि अधिक आकर्षण देता है।
7. जातक उपदेशक बन सकता है। बुध गणित की समझ और शनि लिखने का प्रभाव देते हैं। कम्प्यूटर आदि का प्रोग्रामर बनने में जातक को सफलता मिलती है।
8. जातक श्रेष्ठ बुद्धि वाला, जल मार्ग से यात्रा पसंद करने वाला, कामुक, कृतज्ञ, ज्योतिषी, सुगंधित पदार्थों का सेवी और भोगी होता है। वह मातृभक्त होता है।
9. कर्क, केकड़ा जब किसी वस्तु या जीव को अपने पंजों को जकड़ लेता है तो उसे आसानी से नहीं छोड़ता है। उसी तरह जातकों में अपने लोगों तथा विचारों से चिपके रहने की प्रबल भावना होती है।
10. यह भावना उन्हें ग्रहणशील, एकाग्रता और धैर्य के गुण प्रदान करती है।
11. उनका मूड बदलते देर नहीं लगती है। कल्पनाशक्ति और स्मरण शक्ति बहुत तीव्र होती है।
12. उनके लिए अतीत का महत्व होता है। मैत्री को वे जीवन भर निभाना जानते हैं, अपनी इच्छा के स्वामी होते हैं।
13. ये सपना देखने वाले होते हैं, परिश्रमी और उद्यमी होते हैं।
14. जातक बचपन में प्राय: दुर्बल होते हैं, किन्तु आयु के साथ साथ उनके शरीर का विकास होता जाता है।
15. चूंकि कर्क कालपुरुष की वक्षस्थल और पेट का प्रतिधिनित्व करती है, अत: जातकों को अपने भोजन पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।


                              सिंह



सिंह- मा, मी, मू, मे, मो, टा, टी, टू, टे
राशि स्वरूप- शेर जैसा, राशि स्वामी- सूर्य।
1. सिंह राशि पूर्व दिशा की द्योतक है। इसका चिह्न शेर है। राशि का स्वामी सूर्य है और इस राशि का तत्व अग्नि है।
2. इसके अन्तर्गत मघा नक्षत्र के चारों चरण, पूर्वा फाल्गुनी के चारों चरण और उत्तराफाल्गुनी का पहला चरण आता है।
3. केतु-मंगल जातक में दिमागी रूप से आवेश पैदा करता है। केतु-शुक्र, जो जातक में सजावट और सुन्दरता के प्रति आकर्षण को बढ़ाता है।
4. केतु-बुध, कल्पना करने और हवाई किले बनाने के लिए सोच पैदा करता है। चंद्र-केतु जातक में कल्पना शक्ति का विकास करता है। शुक्र-सूर्य जातक को स्वाभाविक प्रवृत्तियों की तरफ बढ़ाता है।
5. जातक का सुन्दरता के प्रति मोह होता है और वे कामुकता की ओर भागता है। जातक में अपने प्रति स्वतंत्रता की भावना रहती है और किसी की बात नहीं मानता।
6. जातक, पित्त और वायु विकार से परेशान रहने वाले लोग, रसीली वस्तुओं को पसंद करने वाले होते हैं। कम भोजन करना और खूब घूमना, इनकी आदत होती है।
7. छाती बड़ी होने के कारण इनमें हिम्मत बहुत अधिक होती है और मौका आने पर यह लोग जान पर खेलने से भी नहीं चूकते।
8. जातक जीवन के पहले दौर में सुखी, दूसरे में दुखी और अंतिम अवस्था में पूर्ण सुखी होता है।
9. सिंह राशि वाले जातक हर कार्य शाही ढंग से करते हैं, जैसे सोचना शाही, करना शाही, खाना शाही और रहना शाही।
10. इस राशि वाले लोग जुबान के पक्के होते हैं। जातक जो खाता है वही खाएगा, अन्यथा भूखा रहना पसंद करेगा, वह आदेश देना जानता है, किसी का आदेश उसे सहन नहीं होता है, जिससे प्रेम करेगा, उस मरते दम तक निभाएगा, जीवनसाथी के प्रति अपने को पूर्ण रूप से समर्पित रखेगा, अपने व्यक्तिगत जीवन में किसी का आना इस राशि वाले को कतई पसंद नहीं है।
11. जातक कठोर मेहनत करने वाले, धन के मामलों में बहुत ही भाग्यशाली होते हैं। स्वर्ण, पीतल और हीरे-जवाहरात का व्यवसाय इनको बहुत फायदा देने वाले होते हैं।
12. सरकार और नगर पालिका वाले पद इनको खूब भाते हैं। जातकों की वाणी और चाल में शालीनता पाई जाती है।
13. इस राशि वाले जातक सुगठित शरीर के मालिक होते हैं। नृत्य करना भी इनकी एक विशेषता होती है, अधिकतर इस राशि वाले या तो बिलकुल स्वस्थ रहते है या फिर आजीवन बीमार रहते हैं।
14. जिस वारावरण में इनको रहना चाहिए, अगर वह न मिले, इनके अभिमान को कोई ठेस पहुंचाए या इनके प्रेम में कोई बाधा आए, तो यह बीमार रहने लगते है।
15. रीढ़ की हड्डी की बीमारी या चोटों से अपने जीवन को खतरे में डाल लेते हैं। इस राशि के लोगों के लिये हृदय रोग, धड़कन का तेज होना, लू लगना और आदि बीमारी होने की संभावना होती है।


                               कन्या


कन्या- ढो, पा, पी, पू, ष, ण, ठ, पे, पो
राशि स्वरूप- कन्या, राशि स्वामी- बुध।
1. राशि चक्र की छठी कन्या राशि दक्षिण दिशा की द्योतक है। इस राशि का चिह्न हाथ में फूल लिए कन्या है। राशि का स्वामी बुध है। इसके अन्तर्गत उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के दूसरे, तीसरे और चौथे चरण, चित्रा के पहले दो चरण और हस्त नक्षत्र के चारों चरण आते हैं।
2. कन्या राशि के लोग बहुत ज्यादा महत्वाकांक्षी होते हैं। भावुक भी होते हैं और वह दिमाग की अपेक्षा दिल से ज्यादा काम लेते हैं।
3. इस राशि के लोग संकोची, शर्मीले और झिझकने वाले होते हैं।
4. मकान, जमीन और सेवाओं वाले क्षेत्र में इस राशि के जातक कार्य करते हैं।
5. स्वास्थ्य की दृष्टि से फेफड़ों में शीत, पाचनतंत्र एवं आंतों से संबंधी बीमारियां जातकों मे मिलती हैं। इन्हें पेट की बीमारी से प्राय: कष्ट होता है। पैर के रोगों से भी सचेत रहें।
6. बचपन से युवावस्था की अपेक्षा जातकों की वृद्धावस्था अधिक सुखी और ज्यादा स्थिर होता है।
7. इस राशि वाल पुरुषों का शरीर भी स्त्रियों की भांति कोमल होता है। ये नाजुक और ललित कलाओं से प्रेम करने वाले लोग होते हैं।
8. ये अपनी योग्यता के बल पर ही उच्च पद पर पहुंचते हैं। विपरीत परिस्थितियां भी इन्हें डिगा नहीं सकतीं और ये अपनी सूझबूझ, धैर्य, चातुर्य के कारण आगे बढ़ते रहते है।
9. बुध का प्रभाव इनके जीवन मे स्पष्ट झलकता है। अच्छे गुण, विचारपूर्ण जीवन, बुद्धिमत्ता, इस राशि वाले में अवश्य देखने को मिलती है।
10. शिक्षा और जीवन में सफलता के कारण लज्जा और संकोच तो कम हो जाते हैं, परंतु नम्रता तो इनका स्वाभाविक गुण है।
11. इनको अकारण क्रोध नहीं आता, किंतु जब क्रोध आता है तो जल्दी समाप्त नहीं होता। जिसके कारण क्रोध आता है, उसके प्रति घृणा की भावना इनके मन में घर कर जाती है।
12. इनमें भाषण व बातचीत करने की अच्छी कला होती है। संबंधियों से इन्हें विशेष लाभ नहीं होता है, इनका वैवाहिक जीवन भी सुखी नहीं होता। यह जरूरी नहीं कि इनका किसी और के साथ संबंध होने के कारण ही ऐसा होगा।
13. इनके प्रेम सम्बन्ध प्राय: बहुत सफल नहीं होते हैं। इसी कारण निकटस्थ लोगों के साथ इनके झगड़े चलते रहते हैं।
14. ऐसे व्यक्ति धार्मिक विचारों में आस्था तो रखते हैं, परंतु किसी विशेष मत के नहीं होते हैं। इन्हें बहुत यात्राएं भी करनी पड़ती है तथा विदेश गमन की भी संभावना रहती है। जिस काम में हाथ डालते हैं लगन के साथ पूरा करके ही छोड़ते हैं।
15. इस राशि वाले लोग अपरिचित लोगों मे अधिक लोकप्रिय होते हैं, इसलिए इन्हें अपना संपर्क विदेश में बढ़ाना चाहिए। वैसे इन व्यक्ति की मैत्री किसी भी प्रकार के व्यक्ति के साथ हो सकती है।


                                तुला


तुला- रा, री, रू, रे, रो, ता, ती, तू, ते
राशि स्वरूप- तराजू जैसा, राशि स्वामी- शुक्र।
1. तुला राशि का चिह्न तराजू है और यह राशि पश्चिम दिशा की द्योतक है, यह वायुतत्व की राशि है। शुक्र राशि का स्वामी है। इस राशि वालों को कफ की समस्या होती है।
2. इस राशि के पुरुष सुंदर, आकर्षक व्यक्तित्व वाले होते हैं। आंखों में चमक व चेहरे पर प्रसन्नता झलकती है। इनका स्वभाव सम होता है।
3. किसी भी परिस्थिति में विचलित नहीं होते, दूसरों को प्रोत्साहन देना, सहारा देना इनका स्वभाव होता है। ये व्यक्ति कलाकार, सौंदर्योपासक व स्नेहिल होते हैं।
4. ये लोग व्यावहारिक भी होते हैं व इनके मित्र इन्हें पसंद करते हैं।
5. तुला राशि की स्त्रियां मोहक व आकर्षक होती हैं। स्वभाव खुशमिजाज व हंसी खनखनाहट वाली होती हैं। बुद्धि वाले काम करने में अधिक रुचि होती है।
6. घर की साजसज्जा व स्वयं को सुंदर दिखाने का शौक रहता है। कला, गायन आदि गृह कार्य में दक्ष होती हैं। बच्चों से बेहद जुड़ाव रहता है।
7. तुला राशि के बच्चे सीधे, संस्कारी और आज्ञाकारी होते हैं। घर में रहना अधिक पसंद करते हैं। खेलकूद व कला के क्षेत्र में रुचि रखते हैं।
8. तुला राशि के जातक दुबले-पतले, लम्बे व आकर्षक व्यक्तिव वाले होते हैं। जीवन में आदर्शवाद व व्यवहारिकता में पर्याप्त संतुलन रखते हैं।
9. इनकी आवाज विशेष रूप से सौम्य होती हैं। चेहरे पर हमेशा एक मुस्कान छाई रहती है।
10. इन्हें ऐतिहासिक स्थलों की यात्रा करना बहुत भाता है। ये एक अच्छे साथी हैं, चाहें वह वैवाहिक जीवन हो या व्यावसायिक जीवन।
11. आप अपने व्यवहार में बहुत न्यायवादी व उदार होते हैं। कला व साहित्य से जुड़े रहते हैं। गीत, संगीत, यात्रा आदि का शौक रखने वाले व्यक्ति अधिक अच्छे लगते हैं।
12. लड़कियां आत्म विश्वास से परिपूर्ण होती हैं। आपके मनपसंद रंग गहरा नीला व सफेद होते हैं। आपको वैवाहिक जीवन में स्थायित्व पसंद आता है।
13. आप अधिक वाद-विवाद में समय व्यर्थ नहीं करती हैं। आप सामाजिक पार्टियों, उत्सवों में रुचिपूर्वक भाग लेती हैं।
14. आपके बच्चे अपनी पढ़ाई या नौकरी आदि के कारण जल्दी ही आपसे दूर जा सकते हैं।
15. एक कुशल मां साबित होती हैं जो कि अपने बच्चों को उचित शिक्षा व आत्म विश्वास प्रदान करती हैं।


                             वृश्चिक


वृश्चिक- तो, ना, नी, नू, ने, नो, या, यी, यू
राशि स्वरूप- बिच्छू जैसा, राशि स्वामी- मंगल।
1. वृश्चिक राशि का चिह्न बिच्छू है और यह राशि उत्तर दिशा की द्योतक है। वृश्चिक राशि जलतत्व की राशि है। इसका स्वामी मंगल है। यह स्थिर राशि है, यह स्त्री राशि है।
2. इस राशि के व्यक्ति उठावदार कद-काठी के होते हैं। यह राशि गुप्त अंगों, उत्सर्जन, तंत्र व स्नायु तंत्र का प्रतिनिधित्व करती है। अत: मंगल की कमजोर स्थिति में इन अंगों के रोग जल्दी होते हैं। ये लोग एलर्जी से भी अक्सर पीडि़त रहते हैं। विशेषकर जब चंद्रमा कमजोर हो।
3. वृश्चिक राशि वालों में दूसरों को आकर्षित करने की अच्छी क्षमता होती है। इस राशि के लोग बहादुर, भावुक होने के साथ-साथ कामुक होते हैं।
4. शरीरिक गठन भी अच्छा होता है। ऐसे व्यक्तियों की शारीरिक संरचना अच्छी तरह से विकसित होती है। इनके कंधे चौड़े होते हैं। इनमें शारीरिक व मानसिक शक्ति प्रचूर मात्रा में होती है।
5. इन्हें बेवकूफ बनाना आसान नहीं होता है, इसलिए कोई इन्हें धोखा नहीं दे सकता। ये हमेशा साफ-सुथरी और सही सलाह देने में विश्वास रखते हैं। कभी-कभी साफगोई विरोध का कारण भी बन सकती है।
6. ये जातक दूसरों के विचारों का विरोध ज्यादा करते हैं, अपने विचारों के पक्ष में कम बोलते हैं और आसानी से सबके साथ घुलते-मिलते नहीं हैं।
7. यह जातक अक्सर विविधता की तलाश में रहते हैं। वृश्चिक राशि से प्रभावित लड़के बहुत कम बोलते होते हैं। ये आसानी से किसी को भी आकर्षित कर सकते हैं। इन्हें दुबली-पतली लड़कियां आकर्षित करती हैं।
8. वृश्चिक वाले एक जिम्मेदार गृहस्थ की भूमिका निभाते हैं। अति महत्वाकांक्षी और जिद्दी होते हैं। अपने रास्ते चलते हैं मगर किसी का हस्तक्षेप पसंद नहीं करते।
9. लोगों की गलतियों और बुरी बातों को खूब याद रखते हैं और समय आने पर उनका उत्तर भी देते हैं। इनकी वाणी कटु और गुस्सा तेज होता है मगर मन साफ होता है। दूसरों में दोष ढूंढने की आदत होती है। जोड़-तोड़ की राजनीति में चतुर होते हैं।
10. इस राशि की लड़कियां तीखे नयन-नक्ष वाली होती हैं। यह ज्यादा सुन्दर न हों तो भी इनमें एक अलग आकर्षण रहता है। इनका बातचीत करने का अपना विशेष अंदाज होता है।
11. ये बुद्धिमान और भावुक होती हैं। इनकी इच्छा शक्ति बहुत दृढ़ होती है। स्त्रियां जिद्दी और अति महत्वाकांक्षी होती हैं। थोड़ी स्वार्थी प्रवृत्ति भी होती हैं।
12. स्वतंत्र निर्णय लेना इनकी आदत में होते है। मायके परिवार से अधिक स्नेह रहता है। नौकरीपेशा होने पर अपना वर्चस्व बनाए रखती हैं।
13. इन लोगों काम करने की क्षमता काफी अधिक होती है। वाणी की कटुता इनमें भी होती है, सुख-साधनों की लालसा सदैव बनी ही रहती है।
14. ये सभी जातक जिद्दी होते हैं, काम के प्रति लगन रखते हैं, महत्वाकांक्षी व दूसरों को प्रभावित करने की योग्यता रखते हैं। ये व्यक्ति उदार व आत्मविश्वासी भी होते है।
15. वृश्चिक राशि के बच्चे परिवार से अधिक स्नेह रखते हैं। कम्प्यूटर-टीवी का बेहद शौक होता है। दिमागी शक्ति तीव्र होती है, खेलों में इनकी रुचि होती है।


                               धनु


धनु- ये, यो, भा, भी, भू, धा, फा, ढा, भे
राशि स्वरूप- धनुष उठाए हुए, राशि स्वामी- बृहस्पति।
1. धनु द्वि-स्वभाव वाली राशि है। इस राशि का चिह्न धनुषधारी है। यह राशि दक्षिण दिशा की द्योतक है।
2. धनु राशि वाले काफी खुले विचारों के होते हैं। जीवन के अर्थ को अच्छी तरह समझते हैं।
3. दूसरों के बारे में जानने की कोशिश में हमेशा करते रहते हैं।
4. धनु राशि वालों को रोमांच काफी पसंद होता है। ये निडर व आत्म विश्वासी होते हैं। ये अत्यधिक महत्वाकांक्षी और स्पष्टवादी होते हैं।
5. स्पष्टवादिता के कारण दूसरों की भावनाओं को ठेस पहुंचा देते हैं।
6. इनके अनुसार जो इनके द्वारा परखा हुआ है, वही सत्य है। अत: इनके मित्र कम होते हैं। ये धार्मिक विचारधारा से दूर होते हैं।
7. धनु राशि के लड़के मध्यम कद काठी के होते हैं। इनके बाल भूरे व आंखें बड़ी-बड़ी होती हैं। इनमें धैर्य की कमी होती है।
8. इन्हें मेकअप करने वाली लड़कियां पसंद हैं। इन्हें भूरा और पीला रंग प्रिय होता है।
9. अपनी पढ़ाई और करियर के कारण अपने जीवन साथी और विवाहित जीवन की उपेक्षा कर देते हैं। पत्नी को शिकायत का मौका नहीं देते और घरेलू जीवन का महत्व समझते हैं।
10. धनु राशि की लड़कियां लंबे कदमों से चलने वाली होती हैं। ये आसानी से किसी के साथ दोस्ती नहीं करती हैं।
11. ये एक अच्छी श्रोता होती हैं और इन्हें खुले और ईमानदारी पूर्ण व्यवहार के व्यक्ति पसंद आते हैं। इस राशि की स्त्रियां गृहणी बनने की अपेक्षा सफल करियर बनाना चाहती है।
12. इनके जीवन में भौतिक सुखों की महत्ता रहती है। सामान्यत: सुखी और संपन्न जीवन व्यतीत करती हैं।
13. इस राशि के जातक ज्यादातर अपनी सोच का विस्तार नहीं करते एवं कई बार कन्फयूज रहते हैं। एक निर्णय पर पंहुचने पर इनको समय लगता है एवं यह देरी कई बार नुकसान दायक भी हो जाती है।
14. ज्यादातर यह लोग दूसरों के मामलों में दखल नहीं देते एवं अपने काम से काम रखते हैं।
15. इनका पूरा जीवन लगभग मेहनत करके कमाने में जाता है या यह अपने पुश्तैनी कार्य को ही आगे बढाते हैं।


                              मकर


मकर- भो, जा, जी, खी, खू, खे, खो, गा, गी
राशि स्वरूप- मगर जैसा, राशि स्वामी- शनि।
1. मकर राशि का चिह्न मगरमच्छ है। मकर राशि के व्यक्ति अति महत्वाकांक्षी होते हैं। यह सम्मान और सफलता प्राप्त करने के लिए लगातार कार्य कर सकते हैं।
2. इनका शाही स्वभाव व गंभीर व्यक्तित्व होता है। आपको अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए बहुत कठिन परिश्रम करना पड़ता है।
3. इन्हें यात्रा करना पसंद है। गंभीर स्वभाव के कारण आसानी से किसी को मित्र नहीं बनाते हैं। इनके मित्र अधिकतर कार्यालय या व्यवसाय से ही संबंधित होते हैं।
4. सामान्यत: इनका मनपसंद रंग भूरा और नीला होता है। कम बोलने वाले, गंभीर और उच्च पदों पर आसीन व्यक्तियों को ज्यादा पसंद करते हैं।
5. ईश्वर व भाग्य में विश्वास करते हैं। दृढ़ पसंद-नापसंद के चलते इनका वैवाहिक जीवन लचीला नहीं होता और जीवनसाथी को आपसे परेशानी महसूस हो सकती है।
6. मकर राशि के लड़के कम बोलने वाले होते हैं। इनके हाथ की पकड़ काफी मजबूत होती है। देखने में सुस्त, लेकिन मानसिक रूप से बहुत चुस्त होते हैं।
7. प्रत्येक कार्य को बहुत योजनाबद्ध ढंग से करते हैं। गहरा नीला या श्वेत रंग प्रधान वस्त्र पहने हुए लड़कियां इन्हें बहुत पसंद आती हैं।
8. आपकी खामोशी आपके साथी को प्रिय होती है। अगर आपका जीवनसाथी आपके व्यवहार को अच्छी तरह समझ लेता है तो आपका जीवन सुखपूर्वक व्यतीत होता है।
9. आप जीवन साथी या मित्रों के सहयोग से उन्नति प्राप्त कर सकते हैं।
10. मकर राशि की लड़कियां लम्बी व दुबली-पतली होती हैं। यह व्यायाम आदि करना पसंद करती हैं। लम्बे कद के बाबजूद आप ऊंची हिल की सैंडिल पहनना पसंद करती हैं।
11. पारंपरिक मूल्यों पर विश्वास करने वाली होती हैं। छोटे-छोटे वाक्यों में अपने विचारों को व्यक्त करती हैं।
12. दूसरों के विचारों को अच्छी तरह से समझ सकती हैं। इनके मित्र बहुत होते हैं और नृत्य की शौकिन होती हैं।
13. इनको मजबूत कद कठी के व्यक्ति बहुत आकर्षित करते हैं। अविश्वसनीय संबंधों में विश्वास नहीं करती हैं।
14. अगर आप करियर वुमन हैं तो आप कार्य क्षेत्र में अपना अधिकतर समय व्यतीत करती हैं।
15. आप अपने घर या घरेलू कार्यों के विषय में अधिक चिंता नहीं करती हैं।


                               कुंभ


कुंभ- गू, गे, गो, सा, सी, सू, से, सो, दा
राशि स्वरूप- घड़े जैसा, राशि स्वामी- शनि।
1. राशि चक्र की यह ग्यारहवीं राशि है। कुंभ राशि का चिह्न घड़ा लिए खड़ा हुआ व्यक्ति है। इस राशि का स्वामी भी शनि है। शनि मंद ग्रह है तथा इसका रंग नीला है। इसलिए इस राशि के लोग गंभीरता को पसंद करने वाले होते हैं एवं गंभीरता से ही कार्य करते हैं।
2. कुंभ राशि वाले लोग बुद्धिमान होने के साथ-साथ व्यवहारकुशल होते हैं। जीवन में स्वतंत्रता के पक्षधर होते हैं। प्रकृति से भी असीम प्रेम करते हैं।
3. शीघ्र ही किसी से भी मित्रता स्थपित कर सकते हैं। आप सामाजिक क्रियाकलापों में रुचि रखने वाले होते हैं। इसमें भी साहित्य, कला, संगीत व दान आपको बेहद पसंद होता हैं।
4. इस राशि के लोगों में साहित्य प्रेम भी उच्च कोटि का होता है।
5. आप केवल बुद्धिमान व्यक्तियों के साथ बातचीत पसंद करते हैं। कभी भी आप अपने मित्रों से असमानता का व्यवहार नहीं करते हैं।
6. आपका व्यवहार सभी को आपकी ओर आकर्षित कर लेता है।
7. कुंभ राशि के लड़के दुबले होते हैं। आपका व्यवहार स्नेहपूर्ण होता है। इनकी मुस्कान इन्हें आकर्षक व्यक्तित्व प्रदान करती है।
8. इनकी रुचि स्तरीय खान-पान व पहनावे की ओर रहती है। ये बोलने की अपेक्षा सुनना ज्यादा पसंद करते हैं। इन्हें लोगों से मिलना जुलना अच्छा लगता है।
9. अपने व्यवहार में बहुत ईमानदार रहते हैं, इसलिये अनेक लड़कियां आपकी प्रशंसक होती हैं। आपको कलात्मक अभिरुचि व सौम्य व्यक्तित्व वाली लड़कियां आकर्षित करती हैं।
10. अपनी इच्छाओं को दूसरों पर लादना पसंद नहीं करते हैं और अपने घर परिवार से स्नेह रखते हैं।
11. कुंभ राशि की लड़कियां बड़ी-बड़ी आंखों वाली व भूरे बालों वाली होती हैं। यह कम बोलती हैं, इनकी मुस्कान आकर्षक होती है।
12. इनका व्यक्तित्व बहुत आकर्षक होता है, किन्तु आसानी से किसी को अपना नहीं बनाती हैं। ये अति सुंदर और आकर्षक होती हैं।
13. आप किसी कलात्मक रुचि, पेंटिग, काव्य, संगीत, नृत्य या लेखन आदि में अपना समय व्यतीत करती हैं।
14. ये सामान्यत: गंभीर व कम बोलने वाले व्यक्तियों के प्रति आकर्षित होती हैं।
15. इनका जीवन सुखपूर्वक व्यतित होता है, क्योंकि ये ज्यादा इच्छाएं नहीं करती हैं। अपने घर को भी कलात्मक रूप से सजाती हैं।

                                मीन


मीन- दी, दू, थ, झ, ञ, दे, दो, चा, ची
राशि स्वरूप- मछली जैसा, राशि स्वामी- बृहस्पति।
1. मीन राशि का चिह्न मछली होता है। मीन राशि वाले मित्रपूर्ण व्यवहार के कारण अपने कार्यालय व आस पड़ोस में अच्छी तरह से जाने जाते हैं।
2. आप कभी अति मैत्रीपूर्ण व्यवहार नहीं करते हैं। बल्कि आपका व्यवहार बहुत नियंत्रित रहता है। ये आसानी से किसी के विचारों को पढ़ सकते हैं।
3. अपनी ओर से उदारतापूर्ण व संवेदनाशील होते हैं और व्यर्थ का दिखावा व चालाकी को बिल्कुल नापसंद करते हैं।
4. एक बार किसी पर भी भरोसा कर लें तो यह हमेशा के लिए होता है, इसीलिये आप आपने मित्रों से अच्छा भावानात्मक संबंध बना लेते हैं।
5. ये सौंदर्य और रोमांस की दुनिया में रहते हैं। कल्पनाशीलता बहुत प्रखर होती है। अधिकतर व्यक्ति लेखन और पाठन के शौकीन होते हैं। आपको नीला, सफेद और लाल रंग-रूप से आकर्षित करते हैं।
6. आपकी स्तरीय रुचि का प्रभाव आपके घर में देखने को मिलता है। आपका घर आपकी जिंदगी में बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
7. अपने धन को बहुत देखभाल कर खर्च करते हैं। आपके अभिन्न मित्र मुश्किल से एक या दो ही होते हैं। जिनसे ये अपने दिल की सभी बातें कह सकते हैं। ये विश्वासघात के अलावा कुछ भी बर्दाश्त कर सकते हैं।
8. मीन राशि के लड़के भावुक हृदय व पनीली आंखों वाले होते हैं। अपनी बात कहने से पहले दो बार सोचते हैं। आप जिंदगी के प्रति काफी लचीला दृटिकोण रखते हैं।
9. अपने कार्य क्षेत्र में अपनी पहचान बनाने के लिये परिश्रम करते हैं। आपको बुद्धिमान और हंसमुख लोग पसंद हैं।
10. आप बहुत संकोचपूर्वक ही किसी से अपनी बात कह पाते हैं। एक कोमल व भावुक स्वभाव के व्यक्ति हैं। आप पत्नी के रूप में गृहणी को ही पसंद करते हैं।
11. ये खुद घरेलू कार्यों में दखलंदाजी नहीं करते हैं, न ही आप अपनी व्यावसायिक कार्य में उसका दखल पसंद करते हैं। आपका वैवाहिक जीवन अन्य राशियों की अपेक्षा सर्वाधिक सुखमय रहता है।
12. मीन राशि की लड़कियां भावुक व चमकदार आंखों वाली होती हैं। ये आसानी से किसी से मित्रता नहीं करती हैं, लेकिन एक बार उसकी बातों पर विश्वास हो जाए तो आप अपने दिल की बात भी उससे कह देती हैं।
13. ये स्वभाव से कला प्रेमी होती हैं। एक बुद्धिमान व सभ्य व्यक्ति आपको आकर्षित करता है। आप शांतिपूर्वक उसकी बात सुन सकती हैं और आसानी से अपनी भावनाओं को व्यक्त नहीं करती हैं।
14. अपनी मित्रता और वैवाहिक जीवन में सुरक्षा व दृढ़ता रखना पसंद करती हैं। ये अपने पति के प्रति विश्वसनीय होती है और वैसा ही व्यवहार अपने पति से चाहती हैं।
15. आपको ज्योतिष आदि में रुचि हो सकती है। आपको नई-नई चीजें सीखने का शौक होता है।

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